हाय क्या चीज़ थी, क्या चीज़ थी जालिम की नज़र भी - जिगर मुरादाबादी

हाय क्या चीज़ थी, क्या चीज़ थी जालिम की नज़र भी

हाय क्या चीज़ थी, क्या चीज़ थी जालिम की नज़र भी
उफ़ करके वही बैठ गया दर्दे-जिगर भी

होती ही नहीं कम सबे-फुरकत की सियाही
रुखसत हुई क्या शाम के हमराह सहर भी

ये मुजरिमे-उल्फत है, वो मुजरिमे-दीदार
दिल ले के चले हो तो लिए जाओ नजर भी

क्या देखेंगे हम जलवा-ए-महबूब की हम से
देखी न गई देखने वालो की नजर भी

है फैसला-ए-इश्क ही मंजूर तो उठिए
अंगियार भी मौजूद है, हाजिर है जिगर भी- जिगर मुरादाबादी
मायने
शबे-फुर्कत=जुदाई की रात, सहर=सुबह, अंगियार=गैर, दुसरे लोग, प्रेम में प्रतिद्वंदी


Hay kya cheez thi, kya cheez thi zalim ki nazar bhi

Hay kya cheez thi, kya cheez thi zalim ki nazar bhi
uf karke wahi baith gaya darde-jigar bhi

hoti hi nahi kam sabe-furqat ki syahi
rukhsat hui kya sham ke hamrah sahar bhi

ye mujrim-e-ulfat hai, wo mujrim-e-deewar
dil le ke chale ho to liye jao nazar bhio

kya dekhenge ham jalwa-e-mahbub ki ham se
dekh in gaui dekhne walo ki nazar bhi

hai faisla-e-ishq hi manzoor to uthiye
angiyar bhi moujud hai, hajir hai jigar bhi - Jigar Moradabadi

1 Comments

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post