न ताबे-मस्ती, न होशे हस्ती की शुक्रे-नेमत अदा करेंगे
न ताबे-मस्ती, न होशे हस्ती की शुक्रे-नेमत अदा करेंगेखिज़ा में जब है यह अपना आलम, बहार आई तो क्या करेंगे
हर एक ग़म को फ़रोग देकर यहाँ तक आरास्ता करेंगे
वही जो रहते है दूर हमसे, खुद अपनी आगोश वा करेंगे
वहा भी आहे भरा करेंगे, वहा भी नाले किया करेंगे
जिन्हें है तुझसे ही सिर्फ निस्बत, वो तेरी जन्नत को क्या करेंगे
नहीं है जिनको मजाले-हस्ती, सिवाए इसके वो क्या करेंगे
की जिस ज़मी के है बसने वाले, उसे भी रुसवा किया करेंगे
खुद अपने ही सोजे-बातिनी से, निकल एक शम्मे-गैर फ़ानी
चिरागे-दैरो-हरम तो ए दिल, जला बुझा करेंगे - जिगर मुरादाबादी
मायने
ताबे-मस्ती = मस्ती की क्षमता, फ़रोग = बढ़ाना, आरास्ता = सजावट, वा करना = खोलना, नाला करना = रोना-धोना, निस्बत = लगाव, मजाले-हस्ती = जिन्दगी को सँभालने की क्षमता, सोजे-बातिनी = भीतर की आग, दर्द, गैर-फानी = अमिट, दैरो-हरम = मंदिर-मस्जिद
na taab-e-masti, n hosh-e-hasti ki shukre-nemat ada karenge
na taab-e-masti, n hosh-e-hasti ki shukre-nemat ada karengekhiza me jab hai yah apna aalam, bahar aai to kya karenge
har ek gham ko farog dekar yaha aarasta karenge
wahi jo rahte hai door hamse, khud apni aagosh wa karenge
waha bhi aahe bhara karenge, waha bhi nale kiya karenge
jinhe hai tujhse hi sirf nisbat, wo teri jannat ko kya karenge
nahin hai jinko majal-e-hasti, siway iske wo kya karenge
ki jis zameen ke hai basne wale, use bhi ruswa kiya karenge
khud apne hi soj-e-batini se, nikal ek shamm-e-gair fani
chirag-e-dairo-haram to ae dil, jala bujha karenge - Jigar Muradabadi