हर लहजा तेरे पाँव की आहट सुनाई दे
हर लहजा तेरे पाँव की आहट सुनाई देतू लाख सामने न हो, फिर भी दिखाई दे
आ इस हयाते दर्द को मिल कर गुजार दे
या इस तरह बिछड़ की जमाना दुहाई दे
तेरा ख्याल ही मुझे आया न हो कही
इक रौशनी सी आख से दिल तक दिखाई दे
मिलने की तुझसे फिर न तमन्ना करे ये दिल
इतने खुलूस से मुझे दागे जुदाई दे
देखे तो कैस लौ भी दिये की लगे है सदी
सोचे तो गुल की शाख भी जलती दिखाई दे - सईद कैस
मायने
लहजा = पल, हयात = जिन्दगी, खुलूस = निश्चलता, दागे-जुदाई = बिछुड़ने का दर्द, गुल = फुल
har lahja tere paanv ki aahat sunaai de
har lahja tere paanv ki aahat sunaai detu laakh samne n ho, phir bhi dikhai de
aa is hayat-e-dard ko mil kar gujar de
ya is tarah bichhad ki jamana duhaai de
terea khyal hi mujhe aaya n ho kahi
ik roshni si aankh se dil tak dikhai de
milne ki tujhse phir n tammna kare ye dil
itne khuloos se mujhe dage judai de
dekhe to kais lau bhi diye ki lage hai sadi
soche to gul ki shaakh bhi jalti dikhai de - Saeed Kais
लाजवाब गज़ल। बधाई।
ये लाहौर पाकिस्तान के शायर सईद कैस हैं, जो बहरीन में रहते हैं।
एक नमी सी है आँख में झरना वरना क्या है।
सोच रहे हैं इन जख्मों ने भरना वरना क्या है।
छुप छुप कर रोने की आदत छूट गई है हमसे
दिल के एक जरा से खेल में हरना वरना क्या है।
तुम तो दरिया वाले हो तुमको हम बतलाएं क्या
हमने अपने रेत सराब में तरना वरना क्या है।
बारिश का मौसम जब था तो सोचा वोचा कब था
अब दिल विल का बर्तन वर्तन भरना वरना क्या है।
इक वक्फा है कैस जिसे हम मौत समझ लेते हैं
जीस्त का नाम बदल देते हैं मरना वरना क्या है।