सितम भी करता है, उसका सिला भी देता है - मुश्फ़िक ख्वाज़ा

सितम भी करता है, उसका सिला भी देता है

सितम भी करता है, उसका सिला भी देता है
कि मेरे हाल पे वह मुस्कुरा भी देता है

शिनावरो को उसी ने डुबो दिया शायद
जो डूबता को किनारे लगा भी देता है

यही सुकूत, यही दश्ते-जा का सन्नाटा
जो सुनना चाहे कोई तो सदा भी देता है

अजीब कूचा-ए-कातील की रस्म है की यह
जो क़त्ल करता है वह खूँ-बहा भी देता है

वह कौन है की ग़मों से नवाजता है मुझे
ग़मों को सहने का फिर हौसला भी देता है

मुझी से कोई छुपता है राजे-ग़म सरे-शाम
मुझी को आखिरे-शब फिर बता भी देता है - मुश्फ़िक ख्वाज़ा


sitam bhi karta hai, uska sila bhi deta hai

sitam bhi karta hai, uska sila bhi deta hai
ki mere haal pe wo muskura bhi deta hai

shinawaro ko usi ne dubo diya shayad
jo dubto ko kinare laga bhi deta hai

yahi sukut, yahi dashte-ja ka sannata
jo sunna chahe koi to sada bhi deta hai

ajeeb kuncha-e-qatil ki rasm hai ki yah
jo katl karta hai wah khun-baha bhi deta hai

wah koun hai ki gamo se nawajata hai mujhe
gamo ko sahne ka fir housla bhi deta hai

mujhi se koi chhupta hai raze-gam sare-sham
mujhi ko aakhire-shab phir bata bhi deta hai - Musfik khwaja

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