Loading...

कभी डुबोएगा मुझको कभी बचाएगा
तिलिस्मे-कोहे-निदा जब भी टूट जाएगा
तो कारवाने-सदा भी पलट जाएगा
खिंची रहेगी सरो पर अगर यह तलवारे
माता-ए-जीस्त का अहसास बढ़ता जाएगा
युही डुबोता रहा, कश्तिया अगर सैलाब
तो सतहे-आब पे चलना भी आ ही जाएगा
किवाड़ अपने इसी दर से खोलते ही नहीं
सिवा हवा के उन्हें कौन खटखटाएगा
- मंज़ूर हाशमी
मायने
तलातुम=पानी के थपेड़े, लहरे, तिलिस्म=जादू, कोहे-निदा=आवाज का काफिला, मते-जीस्त=जिन्दगी की पूंजी, सतहे-आब=पानी की सतह
क्या आपने इस ब्लॉग(जखीरा) को सब्सक्राइब किया है अगर नहीं तो इसे फीड या ई-मेल के द्वारा सब्सक्राइब करना न भूले |
बहुत खूबसूरत पेशकश है
ReplyDelete