शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया - सुदर्शन फाकिर

शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया

शायद मैं ज़िंदगी की सहर ले के आ गया
क़ातिल को आज अपने ही घर ले के आ गया

ता-उम्र ढूँढता रहा मंज़िल मैं इश्क़ की
अंजाम ये कि गर्द-ए-सफ़र ले के आ गया

नश्तर है मेरे हाथ में काँधों पे मय-कदा
लो मैं इलाज-ए-दर्द-ए-जिगर ले के आ गया

'फ़ाकिर' सनम-कदे में न आता मैं लौट कर
इक ज़ख़्म भर गया था इधर ले के आ गया - सुदर्शन फाकिर


shayad main zindagi ki sahar le ke aa gaya

shayad main zindagi ki sahar le ke aa gaya
qatil ko aaj apne hi ghar le ke aa gaya

ta-umr dhundhta raha manzil main ishq ki
anjam ye ki gard-e-safar le ke aa gaya

nashtar hai mere hath mein kandhon pe mai-kada
lo main ilaj-e-dard-e-jigar le ke aa gaya

'fakir' sanam-kade mein na aata main laut kar
ek zakhm bhar gaya tha idhar le ke aa gaya - Sudarshan Fakir

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