शाम के सावले चेहरे को निखारा जाये
शाम के सावले चेहरे को निखारा जायेक्यों न सागर से कोई चाँद उभारा जाये
रास आया नहीं तस्कीन का साहिल कोई
फिर प्यास को दरिया में उतारा जाये
अब मेरे शहर आएगी सवारी किसकी
अब किस उम्मीद पे रहो को सवारा जाये
मेहरबाँ तेरी नज़र, तेरी अदाएं कातिल
तुझको किस नाम से ऐ दोस्त पुकारा जाये
मुझको डर है तेरे वादे पे भरोसा करके
मुफ्त में ये दिल-खुशफ़हम न मारा जाये - क़तील शिफ़ाई
sham ke sawle chehre ko nikhara jaye
sham ke sawle chehre ko nikhara jayekyo n sagar se koi chand ubhara jaye
ras aaya nahi taskeen ka sahil koi
fir pyas ko dariya me utara jaye
ab mere shahar me aayegi sawari kiski
ab kis ummid pe raho ko swara jaye
mahraba teri nazar, teri adaye katil
tujhko kis nam se e dost pukara jaye
mujhko dar hai tere wade pe bharosa karke
muft me ye dil khush-faham n mara jaye - Qateel Shifai