उस निगाहे मस्त के मस्तो की मस्ती और है - बहादुर शाह जफ़र

उस निगाहे मस्त के मस्तो की मस्ती और है, और मै है और उनकी मै परस्ती और है

उस निगाहे मस्त के मस्तो की मस्ती और है

उस निगाहे मस्त के मस्तो की मस्ती और है,
और मै है और उनकी मै परस्ती और है

अब्रे मिन्जगा से बंधे जिस तरह अश्को की झड़ी,
इस तरह से कब घटा कोई बरसती और है !

नीम-गम्जा पर तीरे हम बेचते है अपना दिल,
इससे भी कोई ज्यादा जिंस सस्ती और है !

गुंचे की मुट्ठी में ज़र है पर नहीं दस्ते-करम,
तंगी-ए-दिल और है और तंग-दस्ती और है !

जो बुलंदी चाहता है अपने मिस्ले-गर्दबाद,
चर्ख की गर्दिश दिखाती उसको पस्ती और है !- बहादुर शाह जफ़र
मायने
मै परस्ती = शराब की पूजा, अब्रे-मिंजगा = पलकों के बादल, नीम-गम्जा = मामूली से नखरे, जिंस = चीज़, चर्ख = आसमान


us nigahe mast ke masto ki masti aur hai

us nigahe mast ke masto ki masti aur hai
aur mai hai aur unki mai parasti aur hai

abre minjga se bandhe jis tarah ashko ki jhadi
is tarah se kab ghata koi barsati aur hai

neem-gamja par teere ham bechte hai apna dil
isse bhi koi jyada jins sasti aur hai

gunche ki muththi me zar hai par nahi daste-karam
tangi-e-dil aur hai aur tang-dasti aur hai

jo bunlandi chahta hai apne misle-gardabad
charkh ki gardih dikhati usko pasti aur hai - Bahadur Shah Zafar

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