पिता पर बेहतरीन शायरी
इंसान के जीवन में माता-पिता बहुत बड़ा स्थान रखते है | जहाँ माँ से हमें स्नेह, वात्सल्य मिलता है और पिताजी से जीवन जीने की सीख | पिता का स्थान जीवन में कोई और नहीं ले सकता है | पिता को कई नामो से पुकारा जाता है पापा, अब्बा, पिताजी और भी कई भाषाओ में कई नामो से | पिता के अहसासात को कई शायरों ने अपनी शायरी में पिरोया है | हम पिता पर शायरी / पिताजी पर शायरी / Fathers day Shayari का संकलन आपके लिए लाए है | इन शेरो को पढ़िए और अपने दोस्तों, रिश्तेदारों के साथ शेयर कीजिये जो पिता से मोहब्बत करते है |
अज़ीज़-तर मुझे रखता है वो रग-ए-जाँ से
ये बात सच है मिरा बाप कम नहीं माँ से
- ताहिर शहीर
अब और क्या तिरा बीमार बाप देगा तुझे
बस इक दुआ कि ख़ुदा तुझ को कामयाब करे
- कैफ़ी आज़मी
उस घर में पाँच बेटे थे सब थे अलग अलग
इक बाप बन के उन की समस्या खड़ा रहा
- उर्मिलेश
काश भूला हुआ शफ़क़त का सबक़ याद आए
बाप के रूप में स्कूल में उस्ताद आए
- सय्यदा फ़रहत
कुर्ता, धोती, गमछा, टोपी सब जुट पाना मुश्किल था
पर बच्चों की फीस समय से भरते आए बाबूजी
- ओम प्रकाश यती
ख़ुद मर गया था जिन को बचाने में पहले बाप
अब के फ़साद में वही बच्चे नहीं रहे
- नवाज़ देवबंदी
ख़ून अपना बेच कर आया है इक मजबूर बाप
बेटियों के हाथ पर मेहंदी लगाने के लिए
- अब्बास दाना
घर की इस बार मुकम्मल मैं तलाशी लूँगा
ग़म छुपा कर मिरे माँ बाप कहाँ रखते थे
- साजिद जावेद साजिद
घर की बुनियादें दीवारें बाम-ओ-दर थे बाबू जी
सब को बाँध के रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबू जी
- आलोक श्रीवास्तव
जब भी वालिद की जफ़ा याद आई
अपने दादा की ख़ता याद आई
- मोहम्मद यूसुफ़ पापा
जब से बच्चों को पसंद आई हैं हिन्दी फिल्में
मुझ को अब्बा नहीं कहते वो पिता कहते हैं
- खालिद इरफ़ान
ज़िंदगी बाप की मानिंद सज़ा देती है
रहम-दिल माँ की तरह मौत बचाने आई
- कैफ़ भोपाली
तहज़ीब चुप है इल्म-ओ-अदब आज शर्मसार
देखो पिता के मुँह पे पिसर बोलने लगे
- दिनेश कुमार
तुफाँ में पतवार पिताजी, आंधी में दीवार पिताजी
छाँव में उनकी हमसब पनपे, वृक्ष थे छायादार पिताजी
- महावीर उत्तरांचली
देर से आने पर वो ख़फ़ा था आख़िर मान गया
आज मैं अपने बाप से मिलने क़ब्रिस्तान गया
- अफ़ज़ल ख़ान
नाती-पोते वाले होकर अब भी गाँव में तन्हा हैं
वो परिवार कहाँ है जिस पर मरते आए बाबूजी
- ओम प्रकाश यती
पुराने घर को गिराया तो बाप रोने लगा
ख़ुशी ने दिल सा दुखाया तो बाप रोने लगा
- शहज़ाद क़ैस
फ़ैसले लम्हात के नस्लों पे भारी हो गए
बाप हाकिम था मगर बेटे भिकारी हो गए
- राहत इंदौरी
बच्चे मेरी उँगली थामे धीरे धीरे चलते थे
फिर वो आगे दौड़ गए मैं तन्हा पीछे छूट गया
- ख़ालिद महमूद
बाप ज़ीना है जो ले जाता है ऊँचाई तक
माँ दुआ है जो सदा साया-फ़िगन रहती है
- सरफ़राज़ नवाज़
बाप लर्ज़ां है कि पहुँची नहीं बारात अब तक
और हम-जोलियाँ दुल्हन को सँवारे जाएँ
- अहमद फ़राज़
बेटा कहता था कि कल शैतान रोज़ा रक्खेगा
बाप बोला तेरा अब्बा जान रोज़ा रक्खेगा
- दिलावर फ़िगार
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
भीतर से ख़ालिस जज़्बाती और ऊपर से ठेठ पिता
अलग अनूठा अनबूझा सा इक तेवर थे बाबू जी
- आलोक श्रीवास्तव
माँ अक्सर मेरी खाँसी पर तुम्हारा धोखा खाती है
ये बड़ की मेरी इक आदत तुम्हारी सी बताती है,
तुम्हारी याद आती है
- मनोज अज़हर
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
- अंजुम सलीमी
मिरा क़द जो थोड़ा सा बढ़ता
मिरे बाप का क़द छोटा पड़ता
- ज़ेहरा निगाह
मिरे बच्चों कहाँ तक बाप के काँधों पे बैठोगे
किसी दिन फ़ेल उस गाड़ी का इंजन हो भी सकता है
- हसीब सोज़
मुझ को तजरबों ने ही बाप बन के पाला है
सोचता हूँ क्या लिखूँ वलदियत के ख़ाने में
- आमिर अमीर
मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते
- मेराज फ़ैज़ाबादी
मुद्दत के बाद ख़्वाब में आया था मेरा बाप
और उस ने मुझ से इतना कहा ख़ुश रहा करो
- अब्बास ताबिश
मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप
वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं
- रईस फ़रोग़
मेरे पिता की उम्र से कम थी न उस की उम्र
वो गिर रहा था और मैं हँसता खड़ा रहा
- उर्मिलेश
मैं अपने बाप के सीने से फूल चुनता हूँ
सो जब भी साँस थमी बाग़ में टहल आया
- हम्माद नियाज़ी
मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग
अपने बच्चे के खिलौने को बचाने के लिए
- शकील जमाली
ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ
इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा
- मुनव्वर राना
वो पेड़ जिस की छाँव में कटी थी उम्र गाँव में
मैं चूम चूम थक गया मगर ये दिल भरा नहीं
- हम्माद नियाज़ी
वो वक़्त और थे कि बुज़ुर्गों की क़द्र थी
अब एक बूढ़ा बाप भरे घर पे बार है
- मुईन शादाब
शानों पे जिस पिता ने दिखाया उसे जहाँ
बिटिया बड़ी हुई तो ठिकाने बदल गए
- निधि गुप्ता कशिश
साया भी उन्हीं से है, सहारा भी उन्हीं का
बच्चों के लिए दर है और दीवार पिताजी
- सचिन शाश्वत
सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है
जैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की
- हम्माद नियाज़ी
हड्डियाँ बाप की गूदे से हुई हैं ख़ाली
कम से कम अब तो ये बेटे भी कमाने लग जाएँ
- रऊफ़ ख़ैर
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं
- अकबर इलाहाबादी
हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताब
पढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हम ने
- मेराज फ़ैज़ाबादी
ये बात सच है मिरा बाप कम नहीं माँ से
- ताहिर शहीर
अब और क्या तिरा बीमार बाप देगा तुझे
बस इक दुआ कि ख़ुदा तुझ को कामयाब करे
- कैफ़ी आज़मी
उस घर में पाँच बेटे थे सब थे अलग अलग
इक बाप बन के उन की समस्या खड़ा रहा
- उर्मिलेश
काश भूला हुआ शफ़क़त का सबक़ याद आए
बाप के रूप में स्कूल में उस्ताद आए
- सय्यदा फ़रहत
कुर्ता, धोती, गमछा, टोपी सब जुट पाना मुश्किल था
पर बच्चों की फीस समय से भरते आए बाबूजी
- ओम प्रकाश यती
ख़ुद मर गया था जिन को बचाने में पहले बाप
अब के फ़साद में वही बच्चे नहीं रहे
- नवाज़ देवबंदी
ख़ून अपना बेच कर आया है इक मजबूर बाप
बेटियों के हाथ पर मेहंदी लगाने के लिए
- अब्बास दाना
घर की इस बार मुकम्मल मैं तलाशी लूँगा
ग़म छुपा कर मिरे माँ बाप कहाँ रखते थे
- साजिद जावेद साजिद
घर की बुनियादें दीवारें बाम-ओ-दर थे बाबू जी
सब को बाँध के रखने वाला ख़ास हुनर थे बाबू जी
- आलोक श्रीवास्तव
जब भी वालिद की जफ़ा याद आई
अपने दादा की ख़ता याद आई
- मोहम्मद यूसुफ़ पापा
जब से बच्चों को पसंद आई हैं हिन्दी फिल्में
मुझ को अब्बा नहीं कहते वो पिता कहते हैं
- खालिद इरफ़ान
ज़िंदगी बाप की मानिंद सज़ा देती है
रहम-दिल माँ की तरह मौत बचाने आई
- कैफ़ भोपाली
तहज़ीब चुप है इल्म-ओ-अदब आज शर्मसार
देखो पिता के मुँह पे पिसर बोलने लगे
- दिनेश कुमार
तुफाँ में पतवार पिताजी, आंधी में दीवार पिताजी
छाँव में उनकी हमसब पनपे, वृक्ष थे छायादार पिताजी
- महावीर उत्तरांचली
देर से आने पर वो ख़फ़ा था आख़िर मान गया
आज मैं अपने बाप से मिलने क़ब्रिस्तान गया
- अफ़ज़ल ख़ान
नाती-पोते वाले होकर अब भी गाँव में तन्हा हैं
वो परिवार कहाँ है जिस पर मरते आए बाबूजी
- ओम प्रकाश यती
पुराने घर को गिराया तो बाप रोने लगा
ख़ुशी ने दिल सा दुखाया तो बाप रोने लगा
- शहज़ाद क़ैस
फ़ैसले लम्हात के नस्लों पे भारी हो गए
बाप हाकिम था मगर बेटे भिकारी हो गए
- राहत इंदौरी
बच्चे मेरी उँगली थामे धीरे धीरे चलते थे
फिर वो आगे दौड़ गए मैं तन्हा पीछे छूट गया
- ख़ालिद महमूद
बाप ज़ीना है जो ले जाता है ऊँचाई तक
माँ दुआ है जो सदा साया-फ़िगन रहती है
- सरफ़राज़ नवाज़
बाप लर्ज़ां है कि पहुँची नहीं बारात अब तक
और हम-जोलियाँ दुल्हन को सँवारे जाएँ
- अहमद फ़राज़
बेटा कहता था कि कल शैतान रोज़ा रक्खेगा
बाप बोला तेरा अब्बा जान रोज़ा रक्खेगा
- दिलावर फ़िगार
बेटियाँ बाप की आँखों में छुपे ख़्वाब को पहचानती हैं
और कोई दूसरा इस ख़्वाब को पढ़ ले तो बुरा मानती हैं
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
भीतर से ख़ालिस जज़्बाती और ऊपर से ठेठ पिता
अलग अनूठा अनबूझा सा इक तेवर थे बाबू जी
- आलोक श्रीवास्तव
माँ अक्सर मेरी खाँसी पर तुम्हारा धोखा खाती है
ये बड़ की मेरी इक आदत तुम्हारी सी बताती है,
तुम्हारी याद आती है
- मनोज अज़हर
माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है
- अंजुम सलीमी
मिरा क़द जो थोड़ा सा बढ़ता
मिरे बाप का क़द छोटा पड़ता
- ज़ेहरा निगाह
मिरे बच्चों कहाँ तक बाप के काँधों पे बैठोगे
किसी दिन फ़ेल उस गाड़ी का इंजन हो भी सकता है
- हसीब सोज़
मुझ को तजरबों ने ही बाप बन के पाला है
सोचता हूँ क्या लिखूँ वलदियत के ख़ाने में
- आमिर अमीर
मुझ को थकने नहीं देता ये ज़रूरत का पहाड़
मेरे बच्चे मुझे बूढ़ा नहीं होने देते
- मेराज फ़ैज़ाबादी
मुद्दत के बाद ख़्वाब में आया था मेरा बाप
और उस ने मुझ से इतना कहा ख़ुश रहा करो
- अब्बास ताबिश
मेरा भी एक बाप था अच्छा सा एक बाप
वो जिस जगह पहुँच के मरा था वहीं हूँ मैं
- रईस फ़रोग़
मेरे पिता की उम्र से कम थी न उस की उम्र
वो गिर रहा था और मैं हँसता खड़ा रहा
- उर्मिलेश
मैं अपने बाप के सीने से फूल चुनता हूँ
सो जब भी साँस थमी बाग़ में टहल आया
- हम्माद नियाज़ी
मैं ने हाथों से बुझाई है दहकती हुई आग
अपने बच्चे के खिलौने को बचाने के लिए
- शकील जमाली
ये सोच के माँ बाप की ख़िदमत में लगा हूँ
इस पेड़ का साया मिरे बच्चों को मिलेगा
- मुनव्वर राना
वो पेड़ जिस की छाँव में कटी थी उम्र गाँव में
मैं चूम चूम थक गया मगर ये दिल भरा नहीं
- हम्माद नियाज़ी
वो वक़्त और थे कि बुज़ुर्गों की क़द्र थी
अब एक बूढ़ा बाप भरे घर पे बार है
- मुईन शादाब
शानों पे जिस पिता ने दिखाया उसे जहाँ
बिटिया बड़ी हुई तो ठिकाने बदल गए
- निधि गुप्ता कशिश
साया भी उन्हीं से है, सहारा भी उन्हीं का
बच्चों के लिए दर है और दीवार पिताजी
- सचिन शाश्वत
सुब्ह सवेरे नंगे पाँव घास पे चलना ऐसा है
जैसे बाप का पहला बोसा क़ुर्बत जैसे माओं की
- हम्माद नियाज़ी
हड्डियाँ बाप की गूदे से हुई हैं ख़ाली
कम से कम अब तो ये बेटे भी कमाने लग जाएँ
- रऊफ़ ख़ैर
हम ऐसी कुल किताबें क़ाबिल-ए-ज़ब्ती समझते हैं
कि जिन को पढ़ के लड़के बाप को ख़ब्ती समझते हैं
- अकबर इलाहाबादी
हमें पढ़ाओ न रिश्तों की कोई और किताब
पढ़ी है बाप के चेहरे की झुर्रियाँ हम ने
- मेराज फ़ैज़ाबादी