मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया - साहिर लुधियानवी

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया

मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया
हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया

बर्बादियों का सोग मनाना फ़ुज़ूल था
बर्बादियों का जश्न मनाता चला गया

जो मिल गया उसी को मुक़द्दर समझ लिया
जो खो गया मैं उस को भुलाता चला गया

ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ
मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया - साहिर लुधियानवी


main zindagi ka sath nibhata chala gaya

main zindagi ka sath nibhata chala gaya
har fikr ko dhuen mein udata chala gaya

barbaadiyon ka sog manana fuzul tha
barbaadiyon ka jashn manata chala gaya

jo mil gaya usi ko muqaddar samajh liya
jo kho gaya main us ko bhulata chala gaya

gham aur khushi mein farq na mahsus ho jahan
main dil ko us maqam pe lata chala gaya - Sahir Ludhianvi

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