बॉस कर्मचारी शायरी | ऑफिस शायरी

बॉस कर्मचारी शायरी | ऑफिस शायरी

ऑफिस में बॉस यानी मालिक और कर्मचारी का रिश्ता बड़ा ही अनोखा रिश्ता होता है | बॉस कभी अपने कर्मचारियों के काम से खुश नहीं होता है वे ऐसा समझते है कि वे काम से अधिक वेतन/सेलेरी दे रहे है वही इसके विपरीत कर्मचारी को लगता है कि वह दिन रात काम करने के बाद भी अपने काम की सही कीमत नहीं पा रहा है बॉस और कर्मचारी के इसी नौक-झौक भरे रिश्ते पर आधारित कुछ शेर आपके लिए पेश है Boss employee shayari या यूँ कहे ऑफिस शायरी


महीनों बाद दफ्तर आ रहे हैं
हम एक सदमे से बाहर आ रहे हैं।।
- तहज़ीब हांफी



जो मेरे गाँव के खेतों में भूक उगने लगी
मिरे किसानों ने शहरों में नौकरी कर ली
- आरिफ़ शफ़ीक़



जब कहीं नौकरी नहीं मिलती
डिग्रियाँ ले के क्या करे कोई
- कैफ़ अहमद सिद्दीकी



नौकरों पर जो गुज़रती है मुझे मालूम है
बस करम कीजे मुझे बेकार रहने दीजिए
- अकबर इलाहाबादी



पीछे पीछे मिरे चलने से रुको मत साहिब
कोई पूछेगा तो कहियो ये है नौकर मेरा
- जुरअत क़लंदर बख़्श



तेरी शर्तों पे ही करना है अगर तुझ को क़ुबूल
ये सुहुलत तो मुझे सारा जहाँ देता है
- अज़हर फ़राग़



हर एक बात पे कहते हो कि तू क्या है
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ्तगू क्या है
- मिर्ज़ा ग़ालिब



तुझसे मेरी चोरियां छुप तो नहीं सकती मगर
पूछती जायेगी तू और मै मुकरता जाऊंगा
- स्वप्निल तिवारी



हम आह भी करते है तो हो जाते हो बदनाम
वो क़त्ल भी करते है तो चर्चा नहीं होता
- अकबर इलाहाबादी



काश हम को भी हो नसीब कभी
ऐश-ए-दफ़्तर में गुनगुनाने का
- जौन एलिया



जवाब देने की मोहलत न मिल सकी हम को
वो पल में लाख सवालात कर के जाता है
- काविश बद्री



बोझ वो सर से गिरा है कि उठाए न उठे
काम वो आन पड़ा है कि बनाए न बने
- मिर्ज़ा ग़ालिब


कैसी तल्ख़ी है कि नस नस में बसी जाती है
ज़हर सा कोई रग-ओ-पै में उतरता क्या है
- जमाल पानीपती


Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post