जगमग-जगमग - सोहनलाल द्विवेदी
नीचे ऊपर, हर जगह सुघर,
कैसी उजियाली है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
छज्जों में, छत में, आले में,
तुलसी के नन्हें थाले में,
यह कौन रहा है दृग को ठग?
जगमग जगमग जगमग जगमग!
पर्वत में, नदियों, नहरों में,
प्यारी प्यारी सी लहरों में,
तैरते दीप कैसे भग-भग!
जगमग जगमग जगमग जगमग!
राजा के घर, कंगले के घर,
हैं वही दीप सुंदर सुंदर!
दीवाली की श्री है पग-पग,
जगमग जगमग जगमग जगमग!
- सोहनलाल द्विवेदी
Jagmag-Jagmag - Sohanlal Dwivedi
har ghar, har dar, bahar, bhitarniche upar, har jagah sughar
kaisi ujiyali hai pag-pag
jagmag jagmag jagmag jagmag!
chhajjo me, chhat me, aale me,
tulsi ke nanhe thale me,
yah kaun raha hai drig ko thag?
jagmag jagmag jagmag jagmag!
parvat me, nadiyo, nahro me,
pyari pyari si lahro me,
tairte deep kaise bhag-bhag!
jagmag jagmag jagmag jagmag!
raja ke ghar, kangale ke ghar,
hai wahi deep sundar sundar!
diwali ki shree hai pag-pag,
jagmag jagmag jagmag jagmag!
-Sohanlal Dwivedi