गाँधी-जयंती - अर्श मलसियानी
भूल गई है आज तो रहबर-ए-हक़-निगाह कोभूल गई है आज तू मर्द-ए-जहाँ-पनाह को
भूल गई है आज तू ज़ब्त के बादशाह को
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
तेरे महंत तो अभी मस्त हैं ज़ात-पात में
तेरे बड़े बड़े गुरु ग़र्क़ हैं छूत-छात में
आह कि ढूँढती है तू नूर अँधेरी रात में
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
आह कि तू ने ज़ब्त के दर्स को भी भुला दिया
आह कि तू ने क़ल्ब से नाम-ए-सफ़ा मिटा दिया
आह कि दोस्तों को भी तू ने अदू बना दिया
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
तेरे मुशीर बे-अमल तेरे वज़ीर बे-अमल
तेरे ग़रीब बे-अमल तेरे अमीर बे-अमल
तेरे सफ़ीर बे-अमल तेरे कबीर बे-अमल
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
उफ़ कि क़दम क़दम पे है तेरा शरीक अहरमन
उफ़ कि तुझे नसीब हैं फिरका-परस्त राहज़न
उफ़ कि तुझे अज़ीज़ हैं चर्ब-ज़बान-ओ-बद-सुख़न
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
उफ़ कि जहालतों पे भी अक़्ल का है गुमाँ तुझे
उफ़ कि अभी पसंद है जहल की दास्ताँ तुझे
उफ़ कि है फ़िरक़ा दोस्ती देती अभी अमाँ तुझे
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
ज़ुल्म किए हैं तू ने जो ज़ुल्म के शाहिदों से पूछ
क़त्ल किए हैं किस क़दर अपने मुजाहिदों से पूछ
पीते हैं रोज़ कितनी मय झूट के ज़ाहिदों से पूछ
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
दर्स-ए-महात्मा का भी तुझ पर कोई असर नहीं
क़ौल-ए-महात्मा पे भी आज तिरी नज़र नहीं
कौन है उस का जा-नशीं इस की तुझे ख़बर नहीं
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
तुझ को बताए कौन आज अस्ल में राहबर है कौन
तुझ को बताए कौन आज बंदा-ए-मो'तबर है कौन
तुझ को बताए कौन आज पीर-ए-जवाँ-नज़र है कौन
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
देख न चश्म-ए-शौक़ से पत्थरों के तो तौर तू
क़द्र-ए-जवाहर-ए-हसीं देख ब-चश्म-ए-ग़ौर तू
वर्ना हज़ार ज़िल्लतें तेरे लिए हैं और तू
तुझ से कहूँ तो क्या कहूँ ऐ मिरी बा-मुराद क़ौम
ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम ऐ मिरी ज़िंदाबाद क़ौम
अर्श मलसियानी
Gandhi Jayanti
bhul gai hai aaj to rahbar-e-haq-nigah kobhul gai hai aaj tu mard-e-jahan-panah ko
bhul gai hai aaj tu zabt ke baadshah ko
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
tere mahant to abhi mast hain zat-pat mein
tere bade bade guru gharq hain chhut-chhat mein
aah ki dhundhti hai tu nur andheri raat mein
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
aah ki tu ne zabt ke dars ko bhi bhula diya
aah ki tu ne qalb se nam-e-safa mita diya
aah ki doston ko bhi tu ne adu bana diya
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
tere mushir be-amal tere wazir be-amal
tere gharib be-amal tere amir be-amal
tere safir be-amal tere kabir be-amal
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
uf ki qadam qadam pe hai tera sharik ahrman
uf ki tujhe nasib hain firqa-parast rahzan
uf ki tujhe aziz hain charb-zaban-o-bad-sukhan
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
uf ki jahaalaton pe bhi aql ka hai guman tujhe
uf ki abhi pasand hai jahl ki dastan tujhe
uf ki hai firqa dosti deti abhi aman tujhe
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
zulm kiye hain tu ne jo zulm ke shahidon se puchh
qatl kiye hain kis qadar apne mujahidon se puchh
pite hain roz kitni mai jhut ke zahidon se puchh
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
dars-e-mahatma ka bhi tujh par koi asar nahin
qaul-e-mahatma pe bhi aaj teri nazar nahin
kaun hai us ka ja-nashin is ki tujhe khabar nahin
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
tujh ko batae kaun aaj asl mein rahbar hai kaun
tujh ko batae kaun aaj banda-e-motabar hai kaun
tujh ko batae kaun aaj pir-e-jawan-nazar hai kaun
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
dekh na chashm-e-shauq se pattharon ke to taur tu
qadr-e-jawahar-e-hasin dekh ba-chashm-e-ghaur tu
warna hazar zillaten tere liye hain aur tu
tujh se kahun to kya kahun ai meri ba-murad qaum
ai meri zindabaad qaum ai meri zindabaad qaum
Arsh Malsiyani