उफ़ कहां लाई ये बेज़ारी हमें - रेख़्ता पटौलवी

उफ़ कहां लाई ये बेज़ारी हमें

उफ़ कहां लाई ये बेज़ारी हमें
जीती बाज़ी लगती है हारी हमें

ख़त्म करना है सितमगारी हमें
हौसला दे रहमते बारी हमें

जानते हैं सब कि अच्छी शय नहीं
क्यों पसंद है फिर अदाकारी हमें

बेवफ़ा कहते हैं हमको बेवफ़ा
कोई सिखलाये वफ़ादारी हमें

मेहरबानी दौर-ए-हाज़िर की ना पूछ
झूट भी लगता है फ़नकारी हमें

ज़ुल्फ़-ए-जम्हूर आज है उलझी हुई
रहनुमा लगते हैं बाज़ारी हमें

इल्म-ओ-दानिश आगही के दौर में
उजली लगती है सियहकारी हमें

क्या बसिरत छिन गई ऐ 'रेख़्ता'
हक़ के बदले मिलती है ख़्वारी हमें - रेख़्ता पटौलवी


uf kaha layi ye bezari hamen

uf kaha layi ye bezari hamen
jeeti baazi lagti hai haari hamen

khatm karna hai sitamgari hamen
hausala de rahmate baari hamen

jante hai sab ki achchhi shay nahin
kyon pasand hai phir adakari hamen

bewafa kahte hai hamko bewafa
koi sikhlayen wafadari hamen

meharbani daur-e-hazir ki na puchh
jhooth bhi lagta hai fankari hamen

zulf-e-zamhoor aaj hai uljhi hui
rahnuma lagte hai bazari hamen

ilm-o-danish aagahi ke daur mein
ujali lagti hai siyahkari hamen

kya basirat chheen gai ae 'Rekhta'
haq ke badle milati hai khwari hamen - Rekhta Pataulvi

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post