सारे जहाँ में कोई, हमदम नहीं हमारा - निज़ाम फतेहपुरी

सारे जहाँ में कोई, हमदम नहीं हमारा

ग़ज़ल- 221 2122 221 2122
अरकान-मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन

सारे जहाँ में कोई, हमदम नहीं हमारा
हमदर्द बन के आख़िर, सब ने किया किनारा

नादान दिल को मेरे, धोखा दिया उन्होंने
जिनका था ज़िंदगी में, हमको फक़त सहारा

अनजान बन गए वो, बर्बाद करके मुझको
फिर भी ये दिल उन्हें कुछ, कहता नहीं बेचारा

अरमान दिल के सारे, दिल में मचल रहे है
अर्ज़े वफा भी करना, हमको नहीं गंवारा

रुख़ से नक़ाब हटते, इक आह दिल से निकली
मैं बेखुदी में उनका, करता रहा नजारा

तारीकियों में भटके, इस आस पर सदा हम
चमकेगा एक दिन तो, तक़दीर का सितारा

मरने का ग़म नहीं है, ग़म तो निज़ाम ये है
अपनी ही सादगी ने, अपना गला उतारा - निज़ाम फतेहपुरी


sare jahan me koi, hamdam nahi hamara

sare jahan me koi, hamdam nahi hamara
hamdard ban ke aakhir, sab ne kiya kinara

nadan dil ko mere, dhokha diya unhone
jinka tha zindagi me, hamko faqat sahara

anjaan ban gaye wo, barbaad karke mujhko
phir bhi ye dil unhe kuchh, kahta nahi behchara

armaan dil ke sare, dil me machal rahe hai
arz-e-wafa bhi karna, hamko nahi ganwara

rukh se naqab hatte, ik aah dil se nikli
mai bekhudi me unka, karta raha nazara

tariqiyon me bhatke, is aas par sada ham
chamkega ek din to, takdeer ka sitara,

marne ka gham nahi hai, gham to nizam ye hai
apni hi sadgi ne, apna gala utara - Nizam Fatehpuri

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