सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा - राहत इंदौरी

सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा

सिसकती रुत को महकता गुलाब कर दूँगा
मैं इस बहार में सब का हिसाब कर दूँगा

मैं इंतिज़ार में हूँ तू कोई सवाल तो कर
यक़ीन रख मैं तुझे ला-जवाब कर दूँगा

हज़ार पर्दों में ख़ुद को छुपा के बैठ मगर
तुझे कभी न कभी बे-नक़ाब कर दूँगा

मुझे भरोसा है अपने लहू के क़तरों पर
मैं नेज़े नेज़े को शाख़-ए-गुलाब कर दूँगा

मुझे यक़ीन कि महफ़िल की रौशनी हूँ मैं
उसे ये ख़ौफ़ कि महफ़िल ख़राब कर दूँगा

मुझे गिलास के अंदर ही क़ैद रख वर्ना
मैं सारे शहर का पानी शराब कर दूँगा

महाजनों से कहो थोड़ा इंतिज़ार करें
शराब-ख़ाने से आ कर हिसाब कर दूँगा - राहत इंदौरी


Sisakti rut ko mahkata gulab kar dunga

Sisakti rut ko mahkata gulab kar dunga
mai is bahar me sab ka hisab kar dunga

mai intizaar me hun tu koi sawal to kar
yaqeen rakh mai tujhe la-jawab kar dunga

hajar pardo me khud ko chhupa ke baith magar
tujhe kabhi n kabhi be-naqab kar dunga

mujhe bharosa hai apne lahu ke qatro par
mai neze-neze ko shakh-e-gulab kar dunga

mujhe yaqeen ki mahfil me roshani hun mai
use ye khauf ki mahfil kharab kar dunga

mujhe gilas ke andar hi qaid rakh warna
mai sare shahar ka pani sharab kar dunga

mahajano se kaho thoda intizaar kare
sharab-khane se aa kar hisab kar dunga - Rahat Indori

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