हम लोग अपनी राह की दीवार हो गए - अशोक मिज़ाज

हम लोग अपनी राह की दीवार हो गए

इस ग़ज़ल के पहले शेर यानी मतले में दो तरह की पंक्तियाँ प्रसिद्द है पहली जो की नीचे ग़ज़ल में लिखी गई है और एक और है जो कुछ यूँ है "*इक दूसरे के वास्ते तलवार हो गए" जिसे प्रारंभिक तौर पर पत्रिकाओं में छपी थी जिसे उन्होंने बाद में बदल दिया |
हम लोग अपनी राह की दीवार हो गए
या'नी कि मस्लहत में गिरफ़्तार हो गए*

अब तो बुलंद और ज़रा हौसला करो
पत्थर जो मील के थे वो दीवार हो गए

तूफ़ाँ में हमको छोड़ के जाने का शुक्रिया
अब अपने हाथ पाँव ही पतवार हो गए

घर को गिराने वाले सियासी मिज़ाज थे
ग़म में शरीक हो के वो ग़म-ख़्वार हो गए

पर्दे की बात पर्दे पे खुल कर जो आ गई
बच्चे समय से पहले समझदार हो गए

कलयुग का दौर सच है मशीनों का दौर है
इंसान जिनके सामने बेकार हो गए

इतनी ज़रा सी बात पे हैरान है मिज़ाज
काग़ज़ के फूल कैसे महकदार हो गए - अशोक मिज़ाज
मायने
मस्लहत = परामर्श/सलाह


ham log apni raah ki deewar ho gaye

ham log apni raah ki deewar ho gaye
yaani ki maslhat me girftaar ho gaye

ab to buland aur zara housla karo
patthar jo meel ke the wo deewar ho gaye

tufaaN me hamko chhod ke jane ka shukriya
ab apne haath paanv hi patwaar ho gaye

ghar ko girane wale siyaji mizaj the
gham me shareek ho ke wo gham-khwar ho gaye

parde ki baat parde pe khul kar jo aa gai
bachche samay se pahle samajhdar ho gaye

kalyug ka dour sach hai mashino ka dour hai
insaan jinke samne bekar ho gaye

itni zara si baat pe hairan hai mizaj
kagaz ke phool kaise mahakdar ho gaye - Ashok Mizaj

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post