हो तिमिर कितना भी गहरा - हर्षवर्धन प्रकाश

हो तिमिर कितना भी गहरा; हो रोशनी पर लाख पहरा; सूर्य को उगना पड़ेगा, फूल को खिलना पड़ेगा।

हो तिमिर कितना भी गहरा

हो तिमिर कितना भी गहरा;
हो रोशनी पर लाख पहरा;
सूर्य को उगना पड़ेगा,
फूल को खिलना पड़ेगा।

हो समय कितना भी भारी;
हमने ना उम्मीद हारी;
दर्द को झुकना पड़ेगा;
रंज को रुकना पड़ेगा।

सब थके हैं, सब अकेले;
लेकिन फिर आएंगे मेले;
साथ ही लड़ना पड़ेगा;
साथ ही चलना पड़ेगा।

- हर्षवर्धन प्रकाश


ho timir kitna bhi gahra

ho timir kitna bhi gahra
ho roshni par lakh pahra
sury ko ugna padega
phool ko khilna padega

ho samay kitna bhi bhari
hamne na ummid hari
dard ko jhukna padega
ranj ko rukna padega

sab thake hai, sab akele
lekin phir aayenge mele
sath hi ladna padega
sath hi chalna padega
- Harshwardhan Prakash

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