अनाज - अली सरदार जाफरी

अनाज - अली सरदार जाफरी

मेरी आशिक है किसानो की हसी कन्याए
जिनके आँचल ने मुहब्बत से उठाया मुझको
खेत को साफ़ किया, नर्म किया मिटटी को
और फिर कोख में धरती की सुलाया मुझको
खाक-दर-खाक हर एक तह में टटोला लेकिन
मौत के ढूंढते हाथो ने न पाया मुझको
ख़ाक से लेके उठा मुझको मेरा ज़ौके-नमू
सब्ज़ कौपल ने हथेली में छुपाया मुझको
मौत से दूर मगर मौत की इक नींद के बाद
जुम्बिशे-वादे-बहारी ने जगाया मुझको
बालिया फूली तो खेतों पे जवानी आई
उन परीज़ादो ने बालो में सजाया मुझको
मेरे सीने में भरा सुर्ख किरन ने सोना
आने झूले में हवाओ ने झुलाया मुझको
मै रकाबी में, प्याली में महक सकता हूँ
चाहिए बस लबो-रुखसार का साया मुझको
मेरी आशिक है किसानो की हसी कन्याए
गोद से उनकी कोई छीन के लाया मुझको
हविसे-ज़र ने मुझे आग में फुका है कभी
कभी बाज़ार में नीलाम चढ़ाया मुझको
सी के बोरो में मुझे फेका है तहखानो में
चोर-बाज़ार कभी रास न आया मुझको
वो तरसते है मुझे और मै तरसता हूँ उन्हें
जिनके हाथो की हरारत ने उगाया मुझको

क्या हुए आज मेरे नाज़ उठाने वाले?
है कहा कैसे-गुलामी से छुड़ाने वाले ? - अली सरदार जाफरी

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