मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब के कुछ अनसुने शेर

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब के कुछ अनसुने शेर

मुज़फ़्फ़र हनफ़ी साहब इस 10-Oct-2020 को इस दुनिया-ए-फानी से कुंच कर गए | पर उनका कलाम आज भी हर उर्दू अदब के चाहने वाले के ज़ेहन में बसता है |
आप हनफ़ी साहब का जीवन परिचय यहाँ पढ़ सकते है
उनके कुछ अनसुने और बेजोड़ शे'र आप सभी के लिए पेश है :

जोर बाकी नहीं उड़ान में क्या
वर्ना रखा है आसमान में क्या



उडने की लज्जतों का जब अन्दाजा हो गया
रोजन परों के वास्ते दरवाजा हो गया



होगी गजब की चीज मेरी आखिरी उड़ान
तरतीब दे रहा हूं अभी बाल-ओ-पर को में



आसमां मेरी उड़ानों की बदौलत कायम है
और दायम है जमीं खुश कदमी के बायस



आदमी ऊंची उड़ान ले रहा है आजकल
आदमियत को नापने का कोई पैमाना नही



वुसअतें आवाज देते हैं कि मौका है यही
हसरते परवाज़ है, टूटे हुए पर और हम



पर शिकस्ता हैं तो क्या, हसरते परवाज़ तो है
जाल को तोड के आ जाऐं, इजाजत हो तो



किस जगह रहिये कहां दिन काटिये क्या कीजिए
गावों मे कीचड बहुत है शहर में कम है हवा



जिसको देखिए उसकी आधी शक्ति तेरी है
इतना भी क्या ऐ नाजुक अन्दाम नहीं मालूम



ऊपर नीचे आगे पीछे दाएँ बाएँ रोक
चिंता की लक्ष्मण रेखाओ आगे जाने दो



मुझको खुद ही अपने दस अहकम नही मालूम
मेरे अंदर रावण है या राम नहीं मालूम



तमाम जोर मेरा आईने ने छीन लिया
कहां से राम ने बाली पे तीर मारा है



करमजी साडी पहन कर इस तरह सजती है वह
फूल अपने सिर कटा दें चांदनी कुर्बान जाऐ



खेतों पर अब्र लेकर ना पुरवाई जायगी
बदली समुन्दरो पे ही बरसाई जायगी



उसने इस अन्दाज से झटका अपने बालों को
मेरी आखों मे दर आया पूरा कजली बन



ऐ मुजफ्फर किस लिए भोपाल याद आने लगा
क्या समझते धे के दिल्ली में न होगा आसमां



बचपन में आकाश को छूता सा लगता था
उस पीपल की शाखें अब कितनी नीची हैं

बचपन और बच्चो पर कुछ शेर

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