आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए आज हम आप सभी के लिए जश्न-ए-आज़ादी पर लिखे वो शेर लेकर आये है जो आज़ादी के पहले की आशाए उम...

आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाए
आज हम आप सभी के लिए जश्न-ए-आज़ादी पर लिखे वो शेर लेकर आये है जो आज़ादी के पहले की आशाए उम्मीदे बताते है और फिर उन आशाओ और उम्मीदों के टूटने के दर्द को बयां करते है |
हिन्दुस्तान ने जब आज़ादी पाई तो जनता के मन में कई मोहक आशाए जागी जिन्हें शायरों ने बखूबी अपनी शायरी में पिरोया
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मंजिल से भी नवाकिफ़ है, राह से भी आगाह नहीं
अपनी धुन में फिर भी रवां है, यह भी अजब दिवाने है - जगन्नाथ आज़ाद
डंक निहायत ज़हरीले है, मज़हब और सियासत के
नागो की नगरी के वासी, नागो की फुंकार तो देख - अर्श मलसियानी
उजड़ के आये है जो वतन से, उन्हें ज़रा एक नज़र तो देखो
अभी तक उन अहले गम की आँखों में आंसुओ की नमी मिलेगी - रामकृष्ण मुजतर
तुझे मज़हब मिटाना ही पड़ेगा रु-ए-हस्ती से
तेरे हाथो बहुत तौहीने-आदमहोती जाती है - आनंद नारायण मुल्ला
इंसानियत खुद अपनी निगाहों में है ज़लील
इतनी बुलंदियों पे तो इंसा न था कभी - जगन्नाथ आज़ाद
चमन से जौरे-खिजां मिटेगा, बहार को ज़िन्दगी मिलेगी
हसेंगे फूल और खिलेगी कलियाँ, फिजाओं को ताज़गी मिलेगी - नसीम भरतपुरी
वतन को आज़ादियाँ मयस्सर हुई तो इतना ही हमने जाना
ख़ुशी ख़ुशी जिंदगी कटेगी, दिलो को खुरसंदगी मिलेगी (खुरसंदगी = ख़ुशी)
गिज़ा मिलेगी, मिलेगा कपड़ा, जो चाहेगा दिल वही मिलेगा
उठा गुलामी का सर से साया, दिलो को अब खुर्रमी मिलेगी - महमुद मुजफ्फरपुरी (खुर्रमी = तरोताजगी)
यह सोचते थे सहर जो होगी, तो इक नै जिंदगी मिलेगी
सकुन दिल को, ज़िगर को राहत, निगाह को रौशनी मिलेगी
चमन की इक-इक रविश पे हमको, दुल्हन की सी दिलकशी मिलेगी
कदम-कदम पे खिलेंगे गुचे चाहारसू ताजगी मिलेगी
न होगा फिर बागबान से शिकवा, न दश्ते-गुलची से कुछ शिकायत
समझ रहे थे यह अहले-गुलशन, हंसी मिलेगी, ख़ुशी मिलेगी - मशहूद मुफ़्ती
पर फिर आज़ादी के चलते भारत विभाजन, हत्याकांड आदि होने लगे तो इन्होने दिल को चाक-चाक कर दिया और शायरों की कलम से फिर यह आह शब्दों के रूप में निकली
नई सहर लाई थी संदेसा की अब नई जिंदगी मिलेगी
किसे खबर थी हयात ताज़ा लहु में लिथड़ी हुई मिलेगी - मंज़र सिद्दीक़ी
कफस से छूटने पे शाद थे हम, कि लज्जते-जिंदगी मिलेगी
यह क्या खबर थी बहारे-गुलशन लहु में डूबी हुई मिलेगी - अबुल मज़ाहिद जाहिद
ज़माना आया है हुर्रियत का, चमन में हरसू यही था चर्चा , (हुर्रियत = आज़ादी)
किसी को इसका गुमां नहीं था कि दुखभरी जिंदगी मिलेगी - महमूद मुजफ्फरपुरी
जो मुल्क में इन्कलाब आता तो, कत्ले-गारत के साथ आया
समझ रहे थे समझने वाले कि इक नई जिंदगी मिलेगी
उदासियो ने उजाड़ डाला कुछ इस तरह बाग़ आरजू का
न ताज़ा दम इसमें गुल मिलेगा, न मुस्कुराती कली मिलेगी - सरीर काबरी गयावी
हुई न थी जब नसीब कुर्बत सुहाने कितने थे ख्वाबे-उल्फत
की हुस्न की हर अदा में रक्सा नई-नई जिंदगी मिलेगी - क़मर नाग्मानी (रक्सा = नृत्य करती हुई )
किया था आज़ादी-ए-वतन का बड़ी मसर्रत से खैर मकदम
किसे था इसका यकी कि अंजामेकार गारत गरी मिलेगी - नैय्यर
न था यह बह्मो-गुमां भी सागर बाहर आएगी जब चमन में
तो पत्ता पत्ता तड़प उठेगा, कली-कली शबनमी मिलेगी - सागर अंसारी ( शबनमी = अश्रुपूर्ण)
बड़ी उम्मीदे, बहुत थे अरमां कि होंगे सैरे चमन से शादाँ
बहार आई तो क्या खबर थी कि हमको आशुफ्तगी मिलेगी - मफ्तु कोटवी ( आशुफ्तगी = परेशानी )
वह दौर आया है जिसका इंसा, कभी तसव्वुर न कर सका था
किसे खबर थी कि एक दिन यूँ, बला में दुनिया घिरी मिलेगी - नुसरत करलोवी
गरीब साहिल से कोई पूछे जो हाल दरिया ने कर दिया है (साहिल = किनारा)
करोगे मौजो का जब नज़ारा मिज़ाज में बरहमी मिलेगी - मुनव्वर लखनवी
कांग्रेस की और से नमक पर से टेक्स हटाने के लिए आन्दोलन किया गया था जिस कारण से जनता को यह आशा थी की टेक्सो को काफी हद तक ख़त्म कर दिया जायेगा परन्तु सरकार आने के बाद नमक के अतिरिक्त कई तरह के टेक्स का बोझ जनता के सर आ गया इससे महंगाई में काफी बढोतरी हुई और उसी को शायरों ने अपनी कलम के जरिये बयाँ किया
ज़माना वाकिफ न था कुछ इससे कि ऐसा कहते-गरां पड़ेगा ( कहते-गरां= अकाल)
जो चीज़ मिलती थी चार पैसो को, अशर्फी पर वही मिलेगी
यह क्या खबर थी की फाका मस्ती में सत्रपोशी भी होगी मुश्किल (सत्रपोशी = गुप्तांगो को ढकने हेतु कपड़ो पहनना )
अमा की जब होगी इल्तजाये तो कत्लो-गारत गरी मिलेगी - सरीर काबरी गयावी (अमा = सुख शांति के लिए )
बहार में जानते थे सकी ! न बाबे-मैखाना बंद होगा ( बाबे-मैखाना = मधुशाला का दरवाजा )
यह क्या खबर थी की मैकसो को शराब तिश्ना लबी मिलेगी - जाबिर फतहपुरी (तश्ना-लबी=प्यास बढ़ाने वाली )
वही है फाकों की जब्र सामानियो से इफराद की हलाकत
मेरा गुमां था गलत कि आज़ाद होक आसुदगी मिलेगी - खलिक इयोलवी
जनता के जब स्वराज्य सम्बन्धी स्वप्न भंग हुए तो वह नेताओं से चिढ गए, जो लम्बे-लम्बे वादे करते थकते न थे
कहाँ है अब वोह जो कह रहे थे कि दौरे-आज़ाद में वतन को
नए नज़ुमो-कमर मिलेंगे, नई-नई ज़िन्दगी मिलेगी - आरिफ बाकोटी ( नाज़ूमो-कमर=नया नक्षत्र चंद्रमा )
आज़ादी मिलने से पहले की सोच थी कि किसी तरह का भेदभाव अब नहीं रहेगा
जो राज़ आज़ादी-ए-वतन में निहां था कौन उसको जानता था (निहाँ = निहित)
कि इक तरफ ख्वाजगी मिलेगी तो इक तरफ बंदगी मिलेगी (ख्वाजगी = हुकूमत, बंदगी = गुलामी)
यही है ज़महुरियत के मानी तो फिर गुलामी का क्या गिला है (ज़महुरियत = प्रजातंत्र)
किसी को ग़म होगा और किसी को मसर्रते-दायमी मिलेगी - सरीर काबरी (मसर्रते-दायमी = स्थाई खुशियाँ )
शगुफ्ता बर्गेहाय गुल की तहमे नौके-खार है (बर्गेहाय गुल = खिले हुए फूल की तहों में, नौके-खार = कांटे छिपे हुए है )
खिजां कहेंगे फिर किसे अगर यही बहार है - जोश मलीहाबादी ( खिजां = पतझड़ )
वही बाकी है अब तक बन्दिशो की सिलसिलाबंदी
कदम बंदी, ज़बाँबंदी, नज़र बन्दी, सदाबंदी
यह हुर्रियत कहाँ है. हुर्रियत की है हवाबंदी (हुर्रियत - आज़ादी )
गुलामी हो गई है रुखसत, मगर बाकी है पाबन्दी
गले से तौक उतारा पाँव में ज़ंजीर पहनादी
तो फिर मै पूछता हूँ, क्या यही है दौरे-आज़ादी - सीमाब अकबराबादी
फ़िज़ाये सोच रही है की इब्ने-आदम ने
खिरद गवां के, जुनूं आज़मा के क्या पाया? (खिरद = बुद्धि)
वही शिकस्ते-तमन्ना वही गमे-ऐय्याम
निगारे-ज़ीस्त ने सब कुछ लुटा के क्या पाया - साहिर लुधियानवी (निगारे-ज़ीस्त = जीवन ऐश्वर्य ने )
सहर का मुजदा सुनाने वालो ! तुलुअ बेशक सहर हुई है (सहर= सुबह, मुजदा = शुभ सन्देश, तुलुअ = उदय, सहर = सूरज)
मगर वोह किस काम की सहर जो चुराले कुटियाओ का उजेला - कैफ़ी
वही कस्मपुरसी, वही बेहिसी आज भी क्यों है तारी
मुझे ऐसा महसूस होता है यह मेरी मेहनत का हासिल नहीं है - अख्तर उल ईमान
सूरज चमका आज़ादी का लेकिन तारीकी कम न हुई (तारीकी = अँधेरी )
पुर हौल अँधेरे ग़ुरबत के कुछ और भी बढ़ते जाते है - मंज़र सिद्दीक़ी
Note : यह शेर शेर-ओ-सुखन भाग -4 से लिए गए है |
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