अगर - मनीष वर्मा

थक गया हूँ बहुत अगर सो जाऊँ तो चादर ओढ़ा देना।

अगर - मनीष वर्मा

थक गया हूँ बहुत
अगर सो जाऊँ तो चादर ओढ़ा देना।

खुशियों के मोती दिल के पास संजो के रखें हैं,
कुछ ज़िन्दगी की भाग - दौड़ में बिखर से गए है।
ढूँढ रहा हूँ उनको,
अगर ढूँढ पाऊँ तो पिरोकर माला बना देना।

कानों में पड़ रही नहीं,
आवाज़ भी चूं भर,
है दिल में शोर फिर भी भर - भर।
है लड़ाई मेरी मुझसे,
अगर हार जाऊँ तो हिम्मत बढ़ा देना।

होते हैं रिश्ते भी कितने अजब,
झीने - झीने,
न जाने बिखर जाएँ कब।
संभालने की इनको है कोशिश मेरी,
अगर कर न पाऊँ तो हाथ बँटा देना।

खाई है कितनी ही चोट,
दिल दुखा है बहुत,
पर टूटा नहीं है।
है समंदर इन आँखों में,
अगर रोक न पाऊँ तो दामन थमा देना।

थक गया हूँ बहुत
अगर सो जाऊँ तो चादर ओढ़ा देना।
-मनीष वर्मा


परिचय

मनीष वर्मा मूलतः दिल्ली के रहने वाले हैं और पिछले १२ सालों से हैदराबाद में रहते है। ये एक बहु-राष्ट्रीय संगठन में पिछले १२ सालों से कार्यरत है। इन्होने दिल्ली विश्विद्यालय से विज्ञान में शिक्षा प्राप्त की है और आजकल शौकिया तौर पर थोड़ा बहुत पठन एवम कविता लेखन करते हैं। इनकी रूचि में संगीत सुनना और छोटी छोटी कविताएँ लिखना शामिल है।

Agar- Manish Verma

thak gaya hun bahut
agar so Jaaun to chadar odha dena

khushiyon ke moti dil ke paas sanjo ke rakhe hai,
kuch zindagi ki bhag-doud me bikhar se gaye hai
dhundh raha hun unko,
agar dhundh pau to pirokar mala bana dena

kaano me padh rahi nahi,
aawaz bhi chun bhar,
hai dil me shor phir bhi bhar-bhar
hai ladai meri mujhse,
agar haar Jaaun to himmat badha dena

hote hai rishte bhi kitne ajab,
jhine-jhine,
n jane bikhar jaye kab
sabhalane ki inko hai koshish meri,
agar kar na pau to haath baNta dena

khai hai kitni hi chot,
dil dukha hai bahut,
par tuta nahi hai
hai samundar in aankho me,
agar rok n pau to daman thama dena

thak gaya hun bahut
agar so Jaaun to chadar odha dena
-Manish Verma

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