छूना नहीं है चाँद को तकने दें दूर से
छूना नहीं है चाँद को तकने दें दूर सेबस इल्तजा यही है हमारी हुज़ूर से
साक़ी ने बेहिसाब पिला दी है, क्या करूँ
उसकी ख़ता भी कम नहीं मेरे क़ुसूर से
इतराते माहताब से मैंने भी कह दिया
तुझ पर ये आबो-ताब है सूरज के नूर से
गर हैं नवाब आप तो फ़नकार हम भी हैं
करियेगा हमसे बात अदब से, शऊर से
कुछ बातें काम-धाम की समझा भी दूँ मगर
फ़ुरसत मिले तो दिल को मुहब्बत के टूर से
मैं तिश्नगी फिर अपनी छुपा कर गुज़र गया
तकता ही रह गया मुझे दरिया गुरूर से
तासीर ही 'अकेला' ग़मों की बदल गयी
राहत बहुत मिली है ग़ज़ल के सुरूर से - वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
chhuna nahi hai chaand ko takne de door se
chhuna nahi hai chaand ko takne de door sebas iltaja yahi hai hamari hujur se
saaki ne behisab pila di hai, kya karu
uski khata bhi kam nahi mere kusur se
itrate maahtab se maine bhi kah diya
tujh par ye aabo-taab hai suraj ke noor se
gar hai nawab aap to fankaar ham bhi hai
kariyega hamse baat adab se, shauur se
kuch baate kam-dham ki samjha bhi du magar
fursat mile to dil ko muhbbat ke tour se
mai tishnagi phir apni chhupa kar gujar gaya
takta hi rah gaya mujhe dariya gurur se
taaseer hi 'Akela' ghamo ki badal gayi
raahat bahut mili hai ghazal ke surur se - Virendra Khare "Akela"
मैं तिश्नगी फिर अपनी छुपा कर गुज़र गया
तकता ही रह गया मुझे दरिया गुरूर से
--वाह! क्या बात है!!
Dr. M C Gupta, Khalish
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