ज़मीं खिलाफ, अभी आसमान ज़ालिम है
ज़मीं खिलाफ, अभी आसमान ज़ालिम हैहमारे वास्ते सारा जहान ज़ालिम है
निगाह पड़ते ही बच्चे सुबकने लगते है
खिलौनो वाली, शहर में, दुकान ज़ालिम है
तलब जहेज़ थी, नारी जलाई, पाई सजा
ये किसने कह दिया हिन्दुस्तान ज़ालिम है
उधार माँग के अक्सर बनाई है इज्ज़त
खुलुसकार की ये आन-बान ज़ालिम है
निखार आ नहीं सकता उभरती कलियों पर
किसी चमन का अगर बागबान ज़ालिम है
पतंग पे लेटूँ तो यादे तेरी सताती है
जो चाहू जागना, दिल की थकान ज़ालिम है
ख़ला में जाके ही शायद सुकून पाएंगे
कही ज़मीं तो कही आसमान ज़ालिम है
शराबखाने में जाते हुए झिझकता हूँ
मेरी ज़बीं पे ये काला निशान ज़ालिम है
इसी के दम से उभरती है जुरअते-अहसास
मेरे शरीर में ऐ 'शम्स' जान ज़ालिम है - शम्स रम्ज़ी
मायने
जहेज़ = दहेज की प्यास, ख़ला = शून्य, खुलुसकार = मीठा बोलने वाले
zameen khilaf, bhi aasmaan zalim hai
zameen khilaf, bhi aasmaan zalim haihamare waste sara jahan zalim hai
nigaah padte hi bachche subkane lagte hai
khilono wali, shahar me, dukan zalim hai
talab jahez thi, nari jalai, pai saja
ye kisne kah diya hindustan zalim hai
udhar maang ke aksar banai hai ijjat
khuluskar ki ye aan-baan zalim hai
patang pe letu to yade teri satati hai
jo chahu jagna, dil ki thakan zalim hai
khala me jake hi shayad sukun payenge
kahi zameen to kahi aasmaan zalim hai
sharabkhane me jate hue jhijhkata hun
meri zabeen pe ye kala nishan zalim hai
isi ke dam se ubharti hai Zuraate-ahsas
mere sharir me ae 'Shams' jan zalim hai - Shams Ramzi