किस कदर नादानियां दिन रात कर जाते हैं लोग - रुखसाना सिद्दीकी

किस कदर नादानियां दिन रात कर जाते हैं लोग

किस कदर नादानियां दिन रात कर जाते हैं लोग
ज़ख्म देते है दवा की बात कर जाते हैं लोग

आंखों में बस जाते हैं वो रोज़ काजल की तरह
बिन किसी मौसम के भी बरसात कर जाते हैं लोग

अब हमें रुसवाइयों का ख़ौफ़ क्योंकर हो भला
जब यही रुसवाइयां सौग़ात कर जाते हैं लोग

ग़ैर मेयारी–सी बातें खुलके कर सकते नहीं
कान में चुपके से घटिया बात कर जाते हैं लोग - रुखसाना सिद्दीकी


kis kadar nadaniyan din rat kar jate hai log

kis kadar nadaniyan din rat kar jate hai log
zakhm dete hai, dawa ki baat kar jate hai log

aankho me bas jate hai wo roj kajal ki tarah
bin kisi mousam ke bhi barsat kar jate hai log

ab hame rusawaiyon ka khof kyokar ho bhala
jab yahi ruswaiyaN sougat kar jate hai log

gair maiyaari-si baate jaye hai log
kaan me chupke se ghatiya baat kar jate hai log - Rukhsana Siddiqui

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