दरजी की जबानी नाई की कहानी
Darji ki Jabani Nai ki Kahani
पिछली कहानी : Alif Laila - 37 लँगड़े आदमी की कहानी - अलिफ लैला
कहानी सूची
खलीफा हारूँ रशीद के काल में बगदाद के आसपास दस कुख्यात डाकू थे जो राहगीरों को लूटते ओर मार डालते थे। खलीफा ने प्रजा के कष्ट का विचार कर के कोतवाल से कहा कि उन डाकुओं को पकड़ कर लाओ वरना मैं तुम्हें प्राणदंड दूँगा। कोतवाल ने बड़ी दौड़-धूप की और निश्चित अवधि में उन्हें पकड़ लिया। वे नदी पार पकड़े गए थे इसलिए उन्हें नाव पर बिठा कर लाया गया। मैं ने, जो बाद में नाव पर चढ़ा था, समझा कि यह लोग मामूली आदमी हैं। दूसरे किनारे पर अन्य सिपाहियों ने उनके साथ मुझे भी बाँध लिया। मैं ने यह भी न कहा कि मैं डाकू नहीं हूँ, क्योंकि आप जानते हैं कि मैं अल्पभाषी हूँ।
खलीफा के सामने हमें पहुँचाया गया तो उसने जल्लाद को आज्ञा दी कि दसों डाकुओं का सिर काट लो। भाग्यवश मुझे सब के अंत में बिठाया गया। जल्लाद ने दसों के सिर काट दिए तो मेरे पास आ कर रुक गया। खलीफा ने ध्यान से मुझे देखा और कहा, मूर्ख बूड्ढे, तू तो डाकू नहीं है, तू किस तरह इन के साथ आ मिला। मैं ने कहा, मालिक, मैं तो इन्हें भला आदमी समझ कर इनके साथ नाव पर बैठ गया था।
खलीफा को यह सुन कर हँसी आई और वह कहने लगा, तू अजीब आदमी है। पहले क्यों नहीं बोला कि तू डाकुओं में नहीं है। मैं ने कहा, सरकार मैं सात भाइयों में सब से छोटा हूँ। मेरे छहों भाई बकवासी हैं, मैं कम बोलता हूँ। मेरा एक भाई कुबड़ा है, दूसरा पोपला, तीसरा काना, चौथा अंधा, पाँचवाँ बूचा यानी कनकटा और छठा खरगोश की तरह होंठकटा है। कहें तो मैं उनका वृत्तांत कहूँ। किंतु शायद वह सुनना न चाहता था इसलिए उसके बोलने के पहले ही मैं ने अपने भाइयों की कथा आरंभ कर दी।
खलीफा के सामने हमें पहुँचाया गया तो उसने जल्लाद को आज्ञा दी कि दसों डाकुओं का सिर काट लो। भाग्यवश मुझे सब के अंत में बिठाया गया। जल्लाद ने दसों के सिर काट दिए तो मेरे पास आ कर रुक गया। खलीफा ने ध्यान से मुझे देखा और कहा, मूर्ख बूड्ढे, तू तो डाकू नहीं है, तू किस तरह इन के साथ आ मिला। मैं ने कहा, मालिक, मैं तो इन्हें भला आदमी समझ कर इनके साथ नाव पर बैठ गया था।
खलीफा को यह सुन कर हँसी आई और वह कहने लगा, तू अजीब आदमी है। पहले क्यों नहीं बोला कि तू डाकुओं में नहीं है। मैं ने कहा, सरकार मैं सात भाइयों में सब से छोटा हूँ। मेरे छहों भाई बकवासी हैं, मैं कम बोलता हूँ। मेरा एक भाई कुबड़ा है, दूसरा पोपला, तीसरा काना, चौथा अंधा, पाँचवाँ बूचा यानी कनकटा और छठा खरगोश की तरह होंठकटा है। कहें तो मैं उनका वृत्तांत कहूँ। किंतु शायद वह सुनना न चाहता था इसलिए उसके बोलने के पहले ही मैं ने अपने भाइयों की कथा आरंभ कर दी।