Alif Laila - 37 लँगड़े आदमी की कहानी

Alif Laila - 37 लँगड़े आदमी की कहानी

SHARE:

लँगड़े आदमी की कहानी Langde Aadmi ki Kahani पिछली कहानी : Alif Laila - 36 काशगर के बादशाह के सामने दरजी की कथा - अलिफ लैला कहानी सूची मे...

Alif Laila लँगड़े आदमी की कहानी | Langde Aadmi ki Kahani

लँगड़े आदमी की कहानी
Langde Aadmi ki Kahani

पिछली कहानी : Alif Laila - 36 काशगर के बादशाह के सामने दरजी की कथा - अलिफ लैला

कहानी सूची

मेरा पिता बगदाद के सम्मानित व्यक्तियों में से था और हम लोग आनंदपूर्वक वहाँ रह रहे थे। मैं अपने पिता का अकेला बेटा था। जिस समय मेरे पिता की मृत्यु हुई उस समय तक मैं न केवल विद्याध्ययन पूरा कर चुका था बल्कि व्यापार के कार्य में भी प्रवीण हो गया था। मेरे पिता ने अपने जीवनकाल ही में अपनी संपत्ति मेरे नाम कर दी थी। मैं धन के व्यय में होशियारी से काम लेता था। नगरनिवासी मुझे बहुत चाहते थे। यद्यपि मेरी यौवन की अवस्था थी तथापि मैं स्त्रियों के व्यवहार और उनकी प्रीति से अनभिज्ञ था। मुझे स्त्रियों से मिलने में लज्जा भी लगती थी।

एक दिन मैं कहीं जा रहा था कि सामने से कई स्त्रियाँ आती दिखाई दीं। मैं उनसे बच कर एक छोटी गली में घुस गया और एक मकान के सामने पड़े तख्त पर बैठ गया कि जब स्त्रियाँ निकल जाएँ तो मैं अपनी राह पकड़ूँ। मेरी आँखों के आगे एक खिड़की थी और उसमें से बहुत-से फूल दिखाई दे रहे थे। वह खिड़की पहले थोड़ी ही खुली थी। अचानक वह पूरी खुल गई और उसमें से एक षोडशी दिखाई दी। मैं उसका सौंदर्य देख कर ठगा-सा रह गया। वह मेरी ओर देख कर मुस्कुराई और कुछ देर पौधों में पानी देने के बाद खिड़की बंद कर के चली गई।

कहाँ तो मैं स्त्रियों से भागता था और कहाँ उस सुंदरी के चले जाने से इतना दुखी हुआ कि अचेत हो गया। जब होश आया तो देखा कि नगर का बड़ा काजी बड़े समारोह के साथ उस मकान में प्रविष्ट हुआ। मैं ने समझ लिया कि वह सुंदरी इसी की पुत्री है। मैं अपने घर वापस आ गया किंतु उस रमणी का ध्यान मुझे बिल्कुल नहीं भूलता था। दो चार दिन में विरह-व्याधि से मैं ऐसा पीड़ित हुआ कि बिस्तर से लग गया। मेरे मित्रों और संबंधियों को मेरी दशा से बड़ी चिंता हुई और सब आ कर मेरा हाल पूछने लगे। मैं ने लज्जावश उन्हें कुछ न बताया। इस पर वे हकीम को ले आए किंतु उस हकीम तथा अन्य हकीमों की दवाओं से मुझे कोई लाभ न हुआ। मेरी दशा क्षय के रोगी की भाँति निरंतर बिगड़ती गई।

एक दिन एक बुढ़िया मुझे देखने को आई। यह वृद्धा मेरे कुछ संबंधियों की परिचिता थी। उसने बड़े ध्यानपूर्वक मेरा सिर से पाँव तक निरीक्षण किया किंतु किसी रोग के लक्षण मुझ में नहीं पाए। वह कुछ सोचती रही, फिर उसने अन्य लोगों को वहाँ से हटा दिया और कहा कि मैं एकांत में इस को देख कर बताऊँगी कि क्या रोग है। जब सब लोग चले गए तो बुढ़िया ने धीमे स्वर में मुझसे कहा, देखो, तुम्हारे रोग को मैं भली-भाँति पहचान गई हूँ। तुम्हें किसी प्रकार का कोई शारीरिक रोग नहीं है। तुम किसी सुंदरी पर मोहित हो और लज्जावश किसी से अपना भेद नहीं कहते। इसी से तुम्हारी ऐसी दशा हुई है। अगर तुम मुझ से सारी बात साफ-साफ बताओ और अपनी प्रेयसी का पता ठिकाना बताओ तो मैं तुम्हारी सहायता करूँ। मैं केवल एक ठंडी साँस भर कर रह गया क्योंकि संकोच ने मेरी जबान बंद कर रखी थी। लेकिन बुढ़िया मेरे पीछे पड़ गई कि ऐसी हालत में लज्जा ठीक नहीं है और अपने हितचिंतकों की सहायता लेनी ही चाहिए।

बुढ़िया के इतना कहने-सुनने से मेरी झिझक भी खुल गई और मैं ने उससे अपने दिल का हाल कह कर कहा कि अगर तुम्हारी मध्यस्थता से मुझे एक बार वह देखने को भी मिल जाए और उसे मेरे प्रेम का हाल मालूम हो जाए तो मेरा जीवन सफल हो जाए। बुढ़िया बोली, बेटे जिस रूपसी की बात तुम कर रहे हो वह शहर के बड़े काजी की पुत्री है। इसमें संदेह नहीं कि उस जैसी सुंदर और मनमोहिनी स्त्री सारे बगदाद में शायद ही कोई हो। किंतु वह लड़की और उसका पिता दोनों ही महागर्वीले और कटुभाषी है। बड़ा काजी अपनी पुत्रियों को घर के अंदर ही बंद रखता है। उसने उन्हें आज्ञा दी है कि अगर आवश्यकतावश बाहर भी निकलो तो किसी पुरुष की ओर न देखना। जब वे बाहर जाती हैं तो उनकी आँखों पर पट्टियाँ बाँध दी जाती हैं ओर दासियाँ उनका हाथ पकड़ कर गलियों में से निकलती हैं जैसे अंधों को ले जाते हैं। ऐसा अजीब हाल है उनके पिता का। अच्छा होता यदि तुम किसी और स्त्री के प्रति आकृष्ट हुए होते।

मैं यह सुन कर चुप हो रहा। मेरी निराशा देख कर बुढ़िया ने कहा, यह जो मैं ने तुम से कहा है पूर्वाग्रह भी हो सकता है। संभव है सफलता की कोई राह निकल आए। सब कुछ भगवान की इच्छा पर निर्भर है। देखो, मैं जा कर अपनी-सी कोशिश करती हूँ। यह कह कर बुढ़िया चली गई।

दो चार दिन बाद वह फिर आई और मुझसे कहने लगी, बेटा, मैं पहले ही कहती थी कि वह स्त्री अत्यंत मानिनी और गर्वीली है। मैं ने उसे बहुत समझाया-बुझाया किंतु इसका उस पर कुछ असर न हुआ। जब मैं ने तुम्हारी बीमारी की बात की तो वह चुपचाप रही किंतु जब मैं ने तुमसे भेंट करने के लिए उससे कहा तो वह बिगड़ पड़ी और मुझ से कहा कि तुम बड़ी बदतमीज हो, अगर ऐसी बेशर्मी की बातें तुमसे सुनूँगी तो तुम्हें धक्के मार कर निकाल दूँगी। यह कह कर भी बुढ़िया ने मुझे धीरज दिया और कहा कि परेशान होने की जरूरत नहीं, मैं अपना प्रयत्न जारी रखूँगी। यह कह कर वह चली गई। उसके इतना दिलासा देने पर भी मेरी निराशा कम न हुई और मेरी शारीरिक दशा पहले से खराब होने लगी। बीच-बीच में बुढ़िया आती और उससे बातें कर के मुझे किंचित धैर्य होता। एक दिन जब वह आई तो मेरे पास कई रिश्तेदार स्त्रियाँ बैठी थीं। बुढ़िया ने मेरे कान में कहा कि मैं तुम्हारे लिए खुशखबरी लाई हूँ। यह सुन कर मुझ में नई शक्ति का संचार हुआ और मैं वृद्धा को ले कर बगलवाले कमरे में चला गया ताकि उसका लाया हुआ समाचार सुनूँ।

बुढ़िया ने कहा, कल सोमवार था। मैं उस सुंदरी के पास गई। वह प्रसन्न मुद्रा में थी और मैं ने सोचा कि काम बन सकता है। मैं ने अपनी दशा बड़ी दुखपूर्ण बनाई ओर कुछ देर में आँसू बहाने लगी। उसने पूछा कि अम्मा, क्या बात है, तुम रो क्यों रही हो। मैं ने कहा क्या कहूँ, मैं उस आदमी की दशा सोच कर रो रही हूँ, वह बेचारा अब तक रो रहा है और तुम्हारे प्रेम के कारण मृत्यु के समीप जा पहुँचा है। ओर तुम इतनी कठोर- हृदया हो कि उस की जान लेने पर तुली हो। वह कहने लगी तुम क्या बक रही हो, मैं उसे जानती भी नहीं तो उस की जान क्यों लूँगी। तुम बेकार के आरोप मुझ पर न लगाया करो।

मैं ने कहा : सुंदरी, तुम शायद भूल गई हो कि मैं ने तुम्हें पहले ही बताया था कि यह वही आदमी है जो तुम्हारे सामनेवाले मकान के चबूतरे पर बैठा था। तुमने खिड़की खोली थी और वृक्षों पर पानी दिया था। वह उसी समय तुम पर मोहित हो गया और तब से तुम्हारे विछोह में रात-दिन घुल रहा है।

अब उसमें साँस के आने-जाने के अलावा कुछ नहीं रहा। उस दिन मैं ने उस की बात की थी तो तुम बुरी तरह बिगड़ गई थी। यह बात जब उसे मालूम हुई तो उस की दशा और बिगड़ने लगी। अब अगर तुम्हारी कुछ कृपा हो तो शायद वह बच जाए, वरना तो उसे गया ही समझो।

यह कहने के बाद मैं ने अपने स्वर और आँखों में और दुख भर कर ठंडी साँसें लेना और आँसू बहाना आरंभ किया। फिर उस मनमोहिनी ने कहा अम्मा, तुम ठीक कहती हो कि मेरे प्रेम ने उस की यह दशा कर दी है। फिर कुछ देर बाद वह बोली कि अगर मुझे देखने और मुझसे बात करने भर से उस की दशा सुधर जाए तो कोई हर्ज नहीं। मैं ने ठंडी साँस भर कर कहा, तुम्हारी इतनी ही कृपा बहुत होगी। उसने कहा कि तुम उससे कहो कि अगर वह मुझे देखना और मुझसे बात करना चाहता है तो मैं इसके लिए तैयार हूँ किंतु इतने से अधिक कोई आशा मुझ से न रखे। और आगे की बात तभी हो सकती है जब मेरे पिता की रजामंदी से उसके साथ मेरा विवाह हो जाए।

मैं ने उसे अनेक आशीर्वाद दिए और कहा कि मैं अब यह प्राणदायक समाचार जा कर उसे सुनाती हूँ। उस सुंदरी ने कहा, मेरे पिताजी शुक्रवार को जुमे की नमाज जामा मस्जिद में जा कर पढ़ते है। उस समय वह आदमी यहाँ अकेला आए तो मैं उसे अंदर बुला लूँगी और पिता के आने के एक घड़ी पहले उसे विदा कर दूँगी, उस समय वह जी भर कर मुझे देख सकता है और मुझ से बातें कर सकता है।

जब बुढ़िया ने यह सब बातें मुझ से कहीं तो मैं खुशी से पागल हो गया। मुझ में जैसे नई जीवनी शक्ति आ गई। मैं ने उस बुढ़िया को बार-बार धन्यवाद दिया और एक हजार अशर्फियाँ उसे इनाम में दे डालीं। अगले शुक्रवार मैं जल्दी उठ गया। मैं ने सोचा मैं हजामत बनवा कर अच्छे कपड़े पहन कर और इत्र लगा कर बड़े काजी के महल में जाऊँ और अपनी प्रेयसी से भेंट करूँ। अतएव मैं ने एक सेवक को आज्ञा दी कि किसी अच्छे नाई को बुला लाए जिससे मैं हजामत बनवाऊँ। वह इसी दुष्ट नाई को ले आया जो इस समय मेरे पीछे बैठा है।

इसने आते ही मुझे देख कर कहा, आप अभी हाल ही में बहुत बीमार जान पड़ते हैं। मैं ने कहा कि हाँ, मैं ने बहुत दिनों तक बीमारी से बड़ा कष्ट उठाया है और अभी हाल ही में अच्छा हुआ हूँ।

उसने कहा, भगवान आपको दीर्घायु करें और सदा नीरोग रखें। मैं ने कहा, सब उस की इच्छा पर निर्भर है, वह जैसे चाहे वैसे रखें। इसके बाद यह बोला कि मुझे क्या आज्ञा है, मैं आपकी हजामत बनाऊँ या फस्द खोलूँ। मुझे गुस्सा आ गया और मैं ने कहा, तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या? अभी मैं कह चुका हूँ कि मैं लंबी बीमारी से उठा हूँ। फस्द खुलवा कर और खून निकलवा कर क्या मुझे जान देनी है। तुम जल्दी से मेरी हजामत बनाओ और अपनी राह पकड़ो। मुझे दोपहर को एक जरूरी काम से जाना है।

यह नाई इस पर भी काफी देर तक बकवास करता रहा। न तो इसने अपनी औजारों की पेटी खोली न कोई उस्तरा निकाल कर तेज किया। हाँ, कुछ देर बाद उसने अपनी पेटी से एक यंत्र-सा निकाला और आँगन में जा कर उसे सूर्य की ओर लगा दिया। फिर उँगलियों पर गिन कर कहने लगा कि आप को प्रसन्न होना चाहिए, आज बृहस्पति और मंगल का बड़ा अच्छा योग है और हजामत के लिए इससे अच्छा कोई अन्य योग नहीं हो सकता। किंतु इसके अतिरिक्त एक दुर्भाग्य का योग भी है। ग्रहों की गति से मालूम हो रहा है कि आप पर बड़ा कष्ट पड़ेगा आज। किंतु आपके प्राणों को कोई खतरा नहीं है। हाँ कष्ट ऐसा होगा कि आप उसे जीवन भर न भूल सकेंगे। आप कृपा कर मुझे साथ रखें तो शायद मुसीबत पड़ने पर मैं आपके काम आऊँ।

यह कह कर लँगड़े आदमी ने कहा कि दोस्तो, आप लोग खुद ही सोचें कि मेरी क्या दशा होगी। एक ओर मेरी जीवनदायिनी प्रेयसी ने मुझे अकेले ऐसी जगह बुलाया जहाँ चिड़िया भी उड़ कर न जा सके, दूसरी ओर यह दुष्ट बेकार की बकबक में समय नष्ट कर रहा है। मुझे क्रोध तो बहुत आया किंतु मैं ने उस पर काबू पा कर कहा कि देखो मैं ने तुम्हें यहाँ सलाह लेने और मुहूर्त देखने को नहीं बुलाया, हजामत बनवाने को बुलाया है। तुम्हें हजामत बनानी है तो बनाओ वरना चले जाओ, मैं दूसरा नाई बुला लूँगा।

इसने दाँत निपोरते हुए कहा, आप इतना क्रुद्ध क्यों हो रहे हैं। मेरे जैसा गुणी नाई आपको सारे संसार में नहीं मिलेगा। मैं अनेक विद्याओं में पारंगत हूँ जिनमें से कुछ का उल्लेख कर रहा हूँ। मैं हकीमी जानता हूँ, ज्योतिष, व्याकरण, काव्यशास्त्र, वेदांत, न्याय व्यवस्था आदि सब जानता हूँ। मैं गणित भी जानता हूँ और खगोलशास्त्र भी और सारे बादशाहों के इतिहासों से भी परिचित हूँ। मेरे स्वर्गवासी पिता ने, जिन की याद से मेरा दिल अब भी भर जाता है, सारी विद्याएँ मुझे सिखाई थीं जिससे मैं आप सज्जनों की सेवा भी करूँ और सुरक्षा भी।

उस की यह बकवास सुन कर मुझे क्रोध की बजाय हँसी आ गई। मैं ने कहा, तुम कब तक बकबक किए जाओगे और किस समय मेरी हजामत बनाओगे। इसने कहा, यह भी अच्छी रही। और लोग तो कहते हैं कि मैं बहुत कम बोलता हूँ और आप कहते हैं कि मैं बकबक करता हूँ। अब सुनिए, मेरे छह भाई हैं। बड़े का नाम है बकबक, दूसरे का बकबारह, तीसरे का बूबक, चौथे का अलकूज, पाँचवें का अलनसचर और छठे का शाहकुबक। इसमें संदेह नहीं कि यह सब बड़े बकवासी हैं। मैं इन सब से छोटा हूँ और बहुत कम बोलता हूँ।

दरजी ने कहा कि लँगड़े व्यक्ति ने यह कह कर कहा कि मित्रो, अब आप ही लोग न्याय करें कि इतना बकबक करने पर भी यह अपने को अल्पभाषी कहता है। अब मैं ने दूसरे सेवक से जो घर की व्यवस्था देखता था कहा कि इस नाई को तीन अशर्फियाँ दे कर विदा कर दो, मैं आज हजामत नहीं बनवाऊँगा। इस नाई ने कहा, मालिक यह आप क्या कह रहे हैं। मैं कोई अपने आप तो आ नहीं गया, आपने बुलाया है तो आया हूँ। मैं तो अब आपकी हजामत बनाए बगैर जाऊँगा नहीं। आप मेरे गुणों को नहीं जानते इसीलिए मेरी कद्र नहीं करते। मेरा दुर्भाग्य है। आपके पिता मेरी कद्र जानते थे। वे जब मुझे बुलाते तो इतना स्नेह करते जैसे गोद में बिठा लेंगे, अपने साथ ही मुझे भोजन कराते थे और मेरी जानकारी और बुद्धिमत्ता की बातें सुन कर बड़े प्रसन्न होते थे। एक दिन उन्होंने मेरे काम से खुश हो कर मुझे सौ अशर्फी और एक भारी जोड़े का इनाम दिया, यानी एक बार ही फस्द खोजने में मेरे पास इतना धन आ गया जो मेरे सारे जीवन के लिए काफी है। मुझे उनकी कृपा बहुत याद आती है।

यह कह कर भी यह नाई चुप नहीं हुआ और दूसरी कहानी शुरू कर दी। मैं बड़ा दुखी हो गया कि यह तो किसी प्रकार पीछा छोड़ता ही नहीं। मैं ने सोचा कि डाँट-फटकार का तो इस पर कुछ असर होता ही नहीं, इसे मीठी बातों से बहलाना चाहिए। मैं ने कहा, भाई, तुम बहुत अच्छी बातें करते हो लेकिन इस समय चुप रहो, जल्दी से मेरी हजामत बना दो क्योंकि मुझे एक जगह जाना है।

यह हँस कर बोला, निस्संदेह आप को कोई बड़ा जरूरी काम होगा जिसके कारण आप इतनी जल्दी कर रहे हैं। आप यह काम मुझे जरूर बताएँ बल्कि मुझे अपने साथ ले चलें ताकि मैं हर मौके पर आप की सहायता कर सकूँ। मैं तो यह कहूँगा कि हर महत्वपूर्ण काम आप मेरी सलाह से ही करें जैसा कि आपके पिता और पितामह किया करते थे। आप मुझे अपना नौकर बल्कि गुलाम समझिए। आप बेझिझक मुझ से अपने मन की बात कहिए।

मैं ने चीख कर कहा, तू बकबक कर के मेरा मगज चाटे जा रहा है, भाग यहाँ से। यह कह कर मैं उठ खड़ा हुआ और जमीन पर पाँव पटकने लगा। इस बेशर्म नाई ने फिर भी अपनी हरकतें नहीं छोड़ीं। मुझे अति क्रुद्ध देख कर बोला कि आप नाराज न हो, मैं अभी आप की हजामत बनाए देता हूँ। यह कह कर इसने अपनी पेटी खोली और मेरी हजामत शुरू की। बहुत देर तक तो यह मेरे सिर पर पानी ही रगड़ता रहा, फिर थोड़ी जगह उस्तरा चला कर ठहर गया और कहने लगा कि आप न मेरे बुढ़ापे का ख्याल करते हैं न मेरे गुणों की कद्र करते हैं, यह सब बातें अच्छी नहीं हैं। मैं ने कहा, चुपचाप अपना काम करो, अधिक बोलने की आवश्यकता नहीं है। इसने कहा, ऐसा महत्वपूर्ण काम क्या आ पड़ा है जिसके लिए आपको इतनी जल्दी और घबराहट है। मैं ने फिर बिगड़ कर कहा, तू यहाँ हजामत बनाने आया है या दुनियाभर के झगड़ों में पड़ने? तुझे इस से क्या लेना देना कि मुझे क्या काम है?

इस निर्लज्ज ने कहा, मेरे मालिक, आप चाहे जितना क्रोध करें मैं तो यही कहूँगा कि मुझे डर है कि आप बगैर समझे-बूझे जल्दी में काम करेंगे और आपकी हानि होगी। बुद्धिमानों का कहना है कि हर काम सोच-समझ कर करना चाहिए। आप कृपा कर के मुझे अपना काम जरूर बताएँ। अभी तो दोपहर होने में तीन घड़ी बाकी हैं, ऐसी जल्दी भी क्या है? मैं ने कहा, जो लोग वादे के पक्के होते हैं वे नियत समय से पहले ही निश्चित स्थान पर पहुँच जाते हैं। तुम फौरन हजामत बनाओ। इसने धीरे-धीरे मेरा सिर मूँड़ना शुरू किया और आधा सिर मूँड़ कर खड़ा हो गया और सूर्य की ओर देख कर कहने लगा कि अभी हजामत पूरा करने की साइत नहीं आई। मैं ने कहा, मुझे ज्योतिष पर विश्वास नही, तू जल्द हाथ चला।

इसने कहा, अच्छा आप कहते है तो बनाए देता हूँ लेकिन डर है कि आप कहीं बीमार न पड़ जाएँ। यह कह कर इसने काम तो शुरू किया लेकिन यह हाल कि एक बाल मूँड़ता था तो दस बातें कहता था। मैं ने इसे धोखा देने के लिए कहा कि मेरे मित्रों ने मेरे स्वास्थ्य लाभ की खुशी में भोज दिया है, मुझे उसमें जाना है। यह सुन कर ये उछल पड़ा और बोला, आपने अच्छी याद दिलाई। मैं ने भी अपने मित्रों को भोजन पर बुलाया था लेकिन मैं भूल गया और कुछ भी तैयारी नहीं की। मैं ने कहा, भाई, तुम इसकी फिक्र न करो, मैं तुम्हें अपनी रसोई से पका-पकाया खाना दिलवा दूँगा। पिताजी तुम्हारी बातों से खुश हो कर इनाम देते थे, मैं तुम्हें उनसे बढ़ कर इनाम दूँगा मगर इस शर्त पर कि तुम चुप रहो।

इसने कहा कि भगवान आपको प्रसन्न रखे, लेकिन न जाने आपका दिया हुआ सामान काफी होगा या नहीं। मैं ने कहा कि छह भुने हुए मुर्ग हैं, तरह-तरह के मांस के पकवान तथा अन्य खाद्य सामग्री है, सत्तर-अस्सी आदमियों के लिए काफी भोजन होगा। मैं ने नौकरों से कहा कि सारा पका खाना इस कमबख्त को दे दो और मदिरा की सुराहियाँ भी। इसने कहा कि कुछ फलों को देने की कृपा करें। मैं ने कहा इसे फल भी दे दो।

लेकिन इसकी दुष्टता का अंत नहीं हुआ। इसने हजामत आधी ही छोड़ कर हर चीज को परखना शुरू किया और काफी देर लगा दी। फिर मैं ने डाँटा तो आ कर हजामत बनाने लगा लेकिन कुछ ही देर में उस्तरे को रख कर कहने लगा, आपके स्वर्गीय पिता ने मुझे कभी धनाभाव न होने दिया लेकिन भगवान की कृपा से आप भी मेरे कद्रदान हैं और मुझे किसी चीज की कमी नहीं रहेगी। मैं ने तो आपके पिता के अलावा किसी के आगे हाथ न फैलाया। मैं कोई ऐसा-वैसा आदमी नहीं हूँ। देखिए, एक आदमी जो नाइयों का दलाल था बड़ा अच्छा नाचता-गाता था, उसे हम लोग झिंझोटी कहते थे। एक आदमी था जिसका नाम शावल था, वह गलियों में घूम-घूम कर भुने चने बेचता था, एक शातिर था जो बाकला और दूसरी तरकारियाँ बेचने का धंधा करता था, एक आदमी था आबूबकर वह गलियों में पानी छिड़कने का काम किया करता था। यह सब बड़े अच्छे आदमी थे और मेरी तरह कम बोलनेवाले थे जिसकी वजह से बड़े सफल रहे। और हाँ, एक कासिम भी था जो खलीफा के यहाँ प्यादागिरी करता था। अब मैं झिंझोटी भाई का एक मशहूर गीत आपको सुनाऊँगा और उसका नाच भी दिखाऊँगा।

यह कह कर इसने उठ कर नाचना-गाना आरंभ कर दिया। मैं ने इसे बहुत डाँटा-फटकारा किंतु इसने पूरा गीत सुना कर ही दम लिया। फिर कहने लगा, अब मैं अपने मित्रों को भोजन करा आऊँ फिर आ कर आपकी हजामत बनाऊँगा, बल्कि आप भी ऐसा कीजिए कि अपने मित्रों की दावत छोड़िए और मेरे यहाँ चल कर मेरे मित्रों के साथ भोजन कीजिए। मुझे क्रोध तो बहुत था किंतु मैं इस मूर्खता की बात पर हँस पड़ा और बोला कि किसी और दिन मैं तुम्हारे दिन भोजन के लिए आऊँगा। यह जिद करने लगा कि आज ही चलिए। मैं ने डाँट कर कहा कि आज मैं किसी प्रकार नहीं जा सकता। फिर यह कहने लगा कि मुझे ही अपने साथ ले चलिए, यह खाना मैं अपने घर ले जा कर अपने मित्रों को खिला दूँ, फिर आ कर आपके साथ आपके मित्रों की दावत में चलूँगा। आप क्या वहाँ अकेले जाते अच्छे लगेंगे।

मैं अपने मन में बड़ा दुखी हुआ। मैं ने दिल ही दिल में रो कर कहा कि हे भगवान, इस दुष्ट नाई से मेरा पीछा किस प्रकार छूटेगा। फिर मैं ने इससे कहा, तुम तुरंत मेरी हजामत बना कर अपने घर जाओ और अपने मित्रों को खिलाओ-पिलाओ। मेरे मित्र अकेले मेरा ही इंतजार कर रहे हैं, वे किसी को मेरे साथ अतिथि नहीं बनाना चाहते। मैं तुम्हें ले गया तो शायद मुझे भी उस दावत में न बैठने दिया जाए। इसने कहा, आप भी खूब मजाक करते हैं। जब आपके मित्र हैं तो आप के साथ एक और आदमी के आने पर उन्हें क्या आपत्ति होगी। फिर मैं तो बड़ा सुभाषी हूँ, मेरे जाने से आपके सभी मित्रों को बड़ी प्रसन्नता होगी।

लँगड़े आदमी ने कहा कि मित्रो, इसकी यह बात सुन कर मैं बिल्कुल निराश हो गया कि आज का सारा मामला तो इसने चौपट कर दिया। यह भी सोचा कि इसको बिगड़ने से भी कोई लाभ नहीं। मैं ने इसकी बात का कुछ उत्तर न दिया।

इतने में जुमे की नमाज की पहली अजान हुई। मैं चुप हो रहा तो इसने भी अपना काम शुरू किया और थोड़ी ही देर में हजामत पूरी कर दी। फिर मैं ने इससे प्रसन्नतापूर्वक कहा कि तुम मेरे नौकरों से खाने-पीने का सामान उठवा कर अपने घर जाओ और अपने मित्रों को खिलाओ-पिलाओ। फिर आ जाना तो मैं तुम्हें दावत में ले चलूँगा। यह किसी तरह मेरे घर से टला तो मैं जल्दी से नहा कर और नए कपड़े पहन कर दूसरी अजान की प्रतीक्षा करता रहा ताकि मेरी प्रेमिका का पिता नमाज को चला जाए तो मैं वहाँ पहुँचूँ। दूसरी अजान होते ही मैं घर से चला किंतु यह दुष्ट वहीं गली में छुपा था और मेरे पीछे चुपचाप चलने लगा।

जब मैं काजी के घर के सामने पहुँचा तो देखा कि यह अभागा भी पीछे चला आ रहा है। मैं बड़ा चिंतित हुआ किंतु उस अवसर पर कुछ कहना-सुनना भी उचित नहीं था। वहाँ जा कर देखा कि बड़े काजी के घर का मुख्य द्वार आधा खुला है। मुझे आता देख कर वह बुढ़िया जो वहाँ प्रतीक्षारत थी दौड़ी आई और मुझे मेरी प्रेमिका के पास ले गई। हम लोग प्रेम और मैत्री से बातचीत कर ही रहे थे कि बाहर कई मनुष्यों के बोलने की आवाज आई। मैं और मेरी प्रेमिका दोनों खिड़की के बाहर देखने लगे। सब से पहले देखा कि काजी नमाज पढ़ कर वापस आ रहा है। फिर इस नाई को भी देखा कि सामनेवाले मकान के उसी तख्त पर बैठा है जहाँ मैं बैठा था।

मुझे दोनों ही को देख कर डर लगा। मेरी प्रेयसी ने मुझे घबराया देखा तो तसल्ली दी। और पहले से तय की हुई एक जगह दिखाई कि आवश्यकता पड़ने पर यहाँ छुप जाना। क्या बताऊँ, उस दिन इस दुष्ट नाई के कारण मुझ पर ऐसी विपत्ति पड़ी जिसका वर्णन नहीं कर सकता। जिस समय काजी अपने घर पहुँचा उसी समय एक अधीनस्थ कर्मचारी ने किसी नौकर को किसी बात पर मारा। वह नौकर बड़ी जोर से चिल्लाया। उस की चीख-पुकार सुन कर तख्त पर बैठा हुआ यह कमबख्त समझा कि मुझ पर मार पड़ रही है और यह अपने कपड़े फाड़ कर और सिर में धूल डाल कर चीख-पुकार करने लगा और आसपास के लोगों को बुलाने लगा।

उन्होंने आ कर पूछा कि क्या बात है तो इसने रोते हुए सिर्फ इतना कहा कि इस मकान के लोग मेरे स्वामी को मार रहे हैं। इसके बाद यह दौड़ा हुआ मेरे घर पहुँचा और मेरे सगे-संबंधियों और नौकरों-चाकरों से भी यही कहा। वे बेचारे भी यह सुन कर दौड़ आए। काजी के मकान के सामने भीड़ लग गई और लोग चीखने-चिल्लाने और दरवाजा भड़भड़ाने लगे। काजी ने अपने एक सेवक से कहा कि बाहर जा कर देख कि यह लोग क्या चाहते हैं। सेवक ने बाहर आ कर देखा और घबरा कर अंदर जा कर कहा कि हजारों लोग जमा हैं और क्रोध में दरवाजा तोड़े दे रहे हैं। काजी खुद बाहर आया और लोगों से पूछने लगा कि क्यों शोर कर रहे हो।

दरवाजे पर जमा भीड़ ने काजी की प्रतिष्ठा का भी कुछ लिहाज न किया और कहा, पापी, कुकर्मी, तूने एक बेकसूर प्रतिष्ठित व्यक्ति को क्यों घर में बंद कर के मारा। वह हैरान हो कर बोला, न कोई बाहरी आदमी मेरे घर में है न मैं ने किसी को मारा-पीटा है। अब यह मूर्ख नाई आगे बढ़ा और काजी को भद्दी-भद्दी गालियाँ दे कर बोला, 'तेरी बेटी मेरे स्वामी पर जान देती है। उसने उसे दोपहर में मिलने के लिए बुलाया। तूने उसे अंदर पा कर बहुत मारा है। अब तू अपना भला चाहे तो तुरंत उसे छोड़ दे।' काजी ने अपने गुस्से को पी कर कहा, यहाँ कोई तुम्हारा स्वामी नहीं है, तुम लोग चाहो तो अंदर जा कर देख लो।

यह सुन कर यह नाई और मेरे रिश्तेदार अंदर घुस गए और एक-एक कमरे में जा कर देखने लगे। मैं अपनी बदनामी और काजी के क्रोध के भय से वहाँ रखे एक खाली संदूक में घुस गया और मेरी प्रेमिका ने उसे बंद कर के कुंडी लगा दी। यह नाई ढूँढ़ता हुआ आया और संदूक की कुंडी खोल कर ढक्कन जरा-सा उठा कर देख लिया कि मैं उसमें हूँ। फिर इसने संदूक अपने सर पर रख लिया और बाहर भागा। काजी के नौकर-चाकर इतने घबराए हुए थे कि किसी ने रोक-टोक नहीं की। जब यह संदूक ले कर भाग रहा था तो रास्ते में ढक्कन खुल गया और मैं संदूक से बाहर जा गिरा। मैं मुँह छुपा कर अपने मकान की ओर भागने लगा। यह नाई और बहुत-से लोग मेरे पीछे दौड़े आए थे। इसी परेशानी में एक नाले को छलाँगते समय मेरा पैर फिसला और मैं उसमें इतनी बुरी तरह गिरा कि मेरा पाँव टूट गया। किंतु उस समय मुझे पाँव की चिंता न थी। मैं गिरता- पड़ता भागने लगा। जब भीड़ मेरे पास पहुँचती तो मैं जेब से मुट्ठी भर सिक्के उस की ओर फेंकता। वह लोग सिक्के उठाते तब तक मैं और आगे भागता।

काफी दूर निकल जाने पर भीड़ ने मेरा पीछा छोड़ दिया किंतु यह दुष्ट नाई बराबर बकवास करता हुआ मेरे पीछे लगा रहा। यह बराबर चिल्ला कर कह रहा था, देखिए, मैं ने आप का कितना उपकार किया है और आप के लिए कितना कष्ट झेला है और किस भाँति आपको काजी के हाथ से बचाया है। मैं ने पहले ही कहा था कि अगर मुझे साथ न ले चलेंगे तो बड़ी मुसीबत में फँसेंगे। यह जो कुछ हुआ आपकी बुद्धि की कमी के कारण हुआ। और आप फिर बड़ी भूल कर रहे हैं कि मुझसे भाग रहे हैं। आप मुझसे भागेंगे तो फिर मुसीबत में पड़ेंगे।'

यह पापी इसी प्रकार बकवास करता हुआ आ रहा था। सारे सुननेवाले समझ गए कि मैं किस काम के लिए गया था और सभी मुझे देख कर हँसने लगे थे। सभी लोग मेरी खिल्ली उड़ा रहे थे। मेरा जी करने लगा कि इसी जगह इसे पकड़ कर इसका गला दबाऊँ। लेकिन यह सोच कर रह गया कि ऐसा करने में मेरी ही और फजीहत होगी। लोग बराबर मेरा मजाक उड़ा रहे थे और यह बराबर बकता हुआ मेरे पीछे लगा था। मैं लाचार हो कर एक बड़े घर में घुस गया। उसका स्वामी मेरा परिचित था। उसके पास जा कर मैं ने कहा, मित्रवर, मुझे इस राक्षस नाई से बचाओ वरना आज यह मेरी जान ही ले लेगा। मित्र इस अचानक आई मुसीबत से परेशान तो हुआ लेकिन उसने दरवाजे पर आ कर इस नाई को डाँट-फटकार कर और धक्के दिलवा कर भगा दिया।

फिर उसने पूछा कि आखिर बात क्या है। मैं घबराहट, थकन और पाँव की तकलीफ से अधिक बात करने के योग्य नहीं था। मैं ने उससे कहा कि मुझे तनिक सावधान हो लेने दो, फिर मैं तुम्हें सारी बातें बताऊँगा। कुछ देर बाद मैं ने उसे सारा किस्सा, विशेषतः उस दिन की सारी घटनाएँ ब्यौरेवार बताईं। वह हँसने लगा और बोला, अब तो वह दुष्ट भाग गया है, अब तुम प्रसन्नतापूर्वक अपने घर जाओ। मैं ने उससे कहा, भाई, मुझ पर कृपा करो और अपने घर से न भगाओ। अगर मैं अपने घर गया तो यह जानलेवा नाई फिर वहाँ पहुँच जाएगा और मुझे इतना दुख देगा कि मेरी जान ही जाती रहेगी। इसके अतिरिक्त यह बात भी है कि इस अभागे के कारण सारे शहर में मेरी ऐसी बदनामी हो गई है कि मैं यहाँ किसी को मुँह दिखाने के योग्य नहीं रहा हूँ।

मित्र मेरी बात सुन कर चुप हो रहा। मैं कुछ दिनों तक उसके घर में रहा और वहाँ छुपे-छुपे अपने गुमाश्तों को बुला कर अपनी संपत्ति का प्रबंध कर दिया। जब पाँव का घाव ठीक हो गया तो लँगड़ाता हुआ (क्योंकि हड्डी टूटने के कारण मैं सारी उम्र के लिए लँगड़ा तो हो ही गया था) बगदाद को छोड़ कर इस नगर में आ बसा। मुझे आशा थी कि यहाँ इस नाई से छुटकारा मिलेगा किंतु मेरे दुर्भाग्य से यह यहाँ भी मौजूद है। मित्रो, आप लोग स्वयं विचार कर देखें कि इस कमबख्त ने मुझ पर क्या-क्या मुसीबत नहीं डाली। उस चंद्रमुखी से जो मुझ से विवाह करने को राजी थी मैं हमेशा के लिए बिछुड़ गया, अपने नगर में किसी को मुँह न दिखा सकने के कारण वहाँ से भागने को विवश हुआ और जीवन भर के लिए लँगड़ा हो गया वह अलग।

यह कहने के बाद वह लँगड़ा सभा से चला गया। सभी लोग उस की दुर्भाग्यपूर्ण कथा सुन कर बड़े प्रभावित हुए। सब ने उस नाई से पूछा कि इसने जो बातें कहीं क्या वे बातें सच हैं। अगर उसका वृत्तांत सच है तो निस्संदेह तू महामूर्ख और खतरनाक आदमी है और तुझे इसकी अच्छी तरह सजा मिलनी चाहिए। नाई बोला, जो कुछ उस आदमी ने कहा वह बिल्कुल सच है। लेकिन आप ही बताइए कि मेरा क्या कसूर है। मैं तो उस की चीख-पुकार सुन कर उस की सहायता के लिए गया था। वह तो लँगड़ा ही हुआ है, मैं न होता तो उस की जान भी जा सकती थी। वह मुझे उल्टे दोष देता है। मैं तो सात भाइयों में सब से कम बोलनेवाला हूँ। कहो तो अपनी और अपने भाइयों की कहानी कहूँ। यह कह कर उसने बगैर उनकी अनुमति की प्रतीक्षा किए अपनी कहानी शुरू कर दी।

COMMENTS

BLOGGER
Name

a-r-azad,1,aadil-rasheed,1,aaina,4,aalam-khurshid,2,aale-ahmad-suroor,1,aam,1,aanis-moin,6,aankhe,4,aansu,1,aas-azimabadi,1,aashmin-kaur,1,aashufta-changezi,1,aatif,1,aatish-indori,6,aawaz,4,abbas-ali-dana,1,abbas-tabish,1,abdul-ahad-saaz,4,abdul-hameed-adam,4,abdul-malik-khan,1,abdul-qavi-desnavi,1,abhishek-kumar,1,abhishek-kumar-ambar,5,abid-ali-abid,1,abid-husain-abid,1,abrar-danish,1,abrar-kiratpuri,3,abu-talib,1,achal-deep-dubey,2,ada-jafri,2,adam-gondvi,11,adibi-maliganvi,1,adil-hayat,1,adil-lakhnavi,1,adnan-kafeel-darwesh,2,afsar-merathi,4,agyeya,5,ahmad-faraz,13,ahmad-hamdani,1,ahmad-hatib-siddiqi,1,ahmad-kamal-parwazi,3,ahmad-nadeem-qasmi,6,ahmad-nisar,3,ahmad-wasi,1,ahmaq-phaphoondvi,1,ajay-agyat,2,ajay-pandey-sahaab,3,ajmal-ajmali,1,ajmal-sultanpuri,1,akbar-allahabadi,6,akhtar-ansari,2,akhtar-lakhnvi,1,akhtar-nazmi,2,akhtar-shirani,7,akhtar-ul-iman,1,akib-javed,1,ala-chouhan-musafir,1,aleena-itrat,1,alhad-bikaneri,1,ali-sardar-jafri,6,alif-laila,63,allama-iqbal,10,alok-dhanwa,2,alok-shrivastav,9,alok-yadav,1,aman-akshar,2,aman-chandpuri,1,ameer-qazalbash,2,amir-meenai,3,amir-qazalbash,3,amn-lakhnavi,1,amrita-pritam,3,amritlal-nagar,1,aniruddh-sinha,2,anjum-rehbar,1,anjum-rumani,1,anjum-tarazi,1,anton-chekhav,1,anurag-sharma,3,anuvad,2,anwar-jalalabadi,2,anwar-jalalpuri,6,anwar-masud,1,anwar-shuoor,1,aqeel-nomani,2,armaan-khan,2,arpit-sharma-arpit,3,arsh-malsiyani,5,arthur-conan-doyle,1,article,57,arvind-gupta,1,arzoo-lakhnavi,1,asar-lakhnavi,1,asgar-gondvi,2,asgar-wajahat,1,asharani-vohra,1,ashok-anjum,1,ashok-babu-mahour,3,ashok-chakradhar,2,ashok-lal,1,ashok-mizaj,9,asim-wasti,1,aslam-allahabadi,1,aslam-kolsari,1,asrar-ul-haq-majaz-lakhnavi,10,atal-bihari-vajpayee,5,ataur-rahman-tariq,1,ateeq-allahabadi,1,athar-nafees,1,atul-ajnabi,3,atul-kannaujvi,1,audio-video,59,avanindra-bismil,1,ayodhya-singh-upadhyay-hariaudh,6,azad-gulati,2,azad-kanpuri,1,azhar-hashmi,1,azhar-sabri,2,azharuddin-azhar,1,aziz-ansari,2,aziz-azad,2,aziz-bano-darab-wafa,1,aziz-qaisi,2,azm-bahjad,1,baba-nagarjun,4,bachpan,9,badnam-shayar,1,badr-wasti,1,badri-narayan,1,bahadur-shah-zafar,7,bahan,9,bal-kahani,5,bal-kavita,108,bal-sahitya,115,baljeet-singh-benaam,7,balkavi-bairagi,1,balmohan-pandey,1,balswaroop-rahi,3,baqar-mehandi,1,barish,16,bashar-nawaz,2,bashir-badr,27,basudeo-agarwal-naman,5,bedil-haidari,1,beena-goindi,1,bekal-utsahi,7,bekhud-badayuni,1,betab-alipuri,2,bewafai,15,bhagwati-charan-verma,1,bhagwati-prasad-dwivedi,1,bhaichara,7,bharat-bhushan,1,bharat-bhushan-agrawal,1,bhartendu-harishchandra,3,bhawani-prasad-mishra,1,bhisham-sahni,1,bholenath,7,bimal-krishna-ashk,1,biography,38,birthday,4,bismil-allahabadi,1,bismil-azimabadi,1,bismil-bharatpuri,1,braj-narayan-chakbast,2,chaand,6,chai,15,chand-sheri,7,chandra-moradabadi,2,chandrabhan-kaifi-dehelvi,1,chandrakant-devtale,5,charagh-sharma,2,charkh-chinioti,1,charushila-mourya,3,chinmay-sharma,1,christmas,4,corona,6,d-c-jain,1,daagh-dehlvi,18,darvesh-bharti,1,daughter,16,deepak-mashal,1,deepak-purohit,1,deepawali,22,delhi,3,deshbhakti,43,devendra-arya,1,devendra-dev,23,devendra-gautam,7,devesh-dixit-dev,11,devesh-khabri,1,devi-prasad-mishra,1,devkinandan-shant,1,devotional,7,dharmveer-bharti,2,dhoop,4,dhruv-aklavya,1,dhumil,3,dikshit-dankauri,1,dil,145,dilawar-figar,1,dinesh-darpan,1,dinesh-kumar,1,dinesh-pandey-dinkar,1,dinesh-shukl,1,dohe,4,doodhnath-singh,3,dosti,27,dr-rakesh-joshi,2,dr-urmilesh,2,dua,1,dushyant-kumar,16,dwarika-prasad-maheshwari,6,dwijendra-dwij,1,ehsan-bin-danish,1,ehsan-saqib,1,eid,14,elizabeth-kurian-mona,5,faheem-jozi,1,fahmida-riaz,2,faiz-ahmad-faiz,18,faiz-ludhianvi,2,fana-buland-shehri,1,fana-nizami-kanpuri,1,fani-badayuni,2,farah-shahid,1,fareed-javed,1,fareed-khan,1,farhat-abbas-shah,1,farhat-ehsas,1,farooq-anjum,1,farooq-nazki,1,father,12,fatima-hasan,2,fauziya-rabab,1,fayyaz-gwaliyari,1,fayyaz-hashmi,1,fazal-tabish,1,fazil-jamili,1,fazlur-rahman-hashmi,10,fikr,4,filmy-shayari,9,firaq-gorakhpuri,8,firaq-jalalpuri,1,firdaus-khan,1,fursat,3,gajanan-madhav-muktibodh,5,gajendra-solanki,1,gamgin-dehlavi,1,gandhi,10,ganesh,2,ganesh-bihari-tarz,1,ganesh-gaikwad-aaghaz,1,ganesh-gorakhpuri,1,garmi,9,geet,2,ghalib-serial,1,gham,2,ghani-ejaz,1,ghazal,1207,ghazal-jafri,1,ghulam-hamdani-mushafi,1,girijakumar-mathur,2,golendra-patel,1,gopal-babu-sharma,1,gopal-krishna-saxena-pankaj,1,gopal-singh-nepali,1,gopaldas-neeraj,8,gopalram-gahmari,1,gopichand-shrinagar,2,gulzar,17,gurpreet-kafir,1,gyanendrapati,4,gyanprakash-vivek,2,habeeb-kaifi,1,habib-jalib,6,habib-tanveer,1,hafeez-jalandhari,3,hafeez-merathi,1,haidar-ali-aatish,5,haidar-ali-jafri,1,haidar-bayabani,2,hamd,1,hameed-jalandhari,1,hamidi-kashmiri,1,hanif-danish-indori,1,hanumant-sharma,1,hanumanth-naidu,2,harendra-singh-kushwah-ehsas,1,hariom-panwar,1,harishankar-parsai,7,harivansh-rai-bachchan,8,harshwardhan-prakash,1,hasan-abidi,1,hasan-naim,1,haseeb-soz,2,hashim-azimabadi,1,hashmat-kamal-pasha,1,hasrat-mohani,3,hastimal-hasti,5,hazal,2,heera-lal-falak-dehlvi,1,hilal-badayuni,1,himayat-ali-shayar,1,hindi,22,hiralal-nagar,2,holi,29,humaira-rahat,1,ibne-insha,8,ibrahim-ashk,1,iftikhar-naseem,1,iftikhar-raghib,1,imam-azam,1,imran-aami,1,imran-badayuni,6,imtiyaz-sagar,1,insha-allah-khaan-insha,1,interview,1,iqbal-ashhar,1,iqbal-azeem,2,iqbal-bashar,1,iqbal-sajid,1,iqra-afiya,1,irfan-ahmad-mir,1,irfan-siddiqi,1,irtaza-nishat,1,ishq,168,ishrat-afreen,1,ismail-merathi,2,ismat-chughtai,2,izhar,7,jagan-nath-azad,5,jaishankar-prasad,6,jalan,1,jaleel-manikpuri,1,jameel-malik,2,jameel-usman,1,jamiluddin-aali,5,jamuna-prasad-rahi,1,jan-nisar-akhtar,11,janan-malik,1,jauhar-rahmani,1,jaun-elia,14,javed-akhtar,18,jawahar-choudhary,1,jazib-afaqi,2,jazib-qureshi,2,jigar-moradabadi,10,johar-rana,1,josh-malihabadi,7,julius-naheef-dehlvi,1,jung,9,k-k-mayank,2,kabir,1,kafeel-aazar-amrohvi,1,kaif-ahmed-siddiqui,1,kaif-bhopali,6,kaifi-azmi,10,kaifi-wajdaani,1,kaka-hathrasi,1,kalidas,1,kalim-ajiz,1,kamala-das,1,kamlesh-bhatt-kamal,1,kamlesh-sanjida,1,kamleshwar,1,kanhaiya-lal-kapoor,1,kanval-dibaivi,1,kashif-indori,1,kausar-siddiqi,1,kavi-kulwant-singh,2,kavita,242,kavita-rawat,1,kedarnath-agrawal,4,kedarnath-singh,1,khalid-mahboob,1,khalida-uzma,1,khalil-dhantejvi,1,khat-letters,10,khawar-rizvi,2,khazanchand-waseem,1,khudeja-khan,1,khumar-barabankvi,4,khurram-tahir,1,khurshid-rizvi,1,khwab,1,khwaja-meer-dard,4,kishwar-naheed,2,kitab,22,krishan-chandar,1,krishankumar-chaman,1,krishn-bihari-noor,11,krishna,9,krishna-kumar-naaz,5,krishna-murari-pahariya,1,kuldeep-salil,2,kumar-pashi,1,kumar-vishwas,2,kunwar-bechain,9,kunwar-narayan,5,lala-madhav-ram-jauhar,1,lata-pant,1,lavkush-yadav-azal,3,leeladhar-mandloi,1,liaqat-jafri,1,lori,2,lovelesh-dutt,1,maa,26,madan-mohan-danish,2,madhavikutty,1,madhavrao-sapre,1,madhuri-kaushik,1,madhusudan-choube,1,mahadevi-verma,4,mahaveer-prasad-dwivedi,1,mahaveer-uttranchali,8,mahboob-khiza,1,mahendra-matiyani,1,mahesh-chandra-gupt-khalish,2,mahmood-zaki,1,mahwar-noori,1,maikash-amrohavi,1,mail-akhtar,1,maithilisharan-gupt,3,majdoor,13,majnoon-gorakhpuri,1,majrooh-sultanpuri,5,makhanlal-chaturvedi,3,makhdoom-moiuddin,7,makhmoor-saeedi,1,mangal-naseem,1,manglesh-dabral,4,manish-verma,3,mannan-qadeer-mannan,1,mannu-bhandari,1,manoj-ehsas,1,manoj-sharma,1,manzoor-hashmi,2,manzoor-nadeem,1,maroof-alam,23,masooda-hayat,2,masoom-khizrabadi,1,matlabi,3,mazhar-imam,2,meena-kumari,14,meer-anees,1,meer-taqi-meer,10,meeraji,1,mehr-lal-soni-zia-fatehabadi,5,meraj-faizabadi,3,milan-saheb,2,mirza-ghalib,59,mirza-muhmmad-rafi-souda,1,mirza-salaamat-ali-dabeer,1,mithilesh-baria,1,miyan-dad-khan-sayyah,1,mohammad-ali-jauhar,1,mohammad-alvi,6,mohammad-deen-taseer,3,mohammad-khan-sajid,1,mohan-rakesh,1,mohit-negi-muntazir,3,mohsin-bhopali,1,mohsin-kakorvi,1,mohsin-naqwi,2,moin-ahsan-jazbi,4,momin-khan-momin,4,motivational,11,mout,5,mrityunjay,1,mubarik-siddiqi,1,muhammad-asif-ali,1,muktak,1,mumtaz-hasan,3,mumtaz-rashid,1,munawwar-rana,29,munikesh-soni,2,munir-anwar,1,munir-niazi,5,munshi-premchand,16,murlidhar-shad,1,mushfiq-khwaza,1,mushtaq-sadaf,2,mustafa-akbar,1,mustafa-zaidi,2,mustaq-ahmad-yusufi,1,muzaffar-hanfi,26,muzaffar-warsi,2,naat,1,nadeem-gullani,1,naiyar-imam-siddiqui,1,nand-chaturvedi,1,naqaab,2,narayan-lal-parmar,3,narendra-kumar-sonkaran,3,naresh-chandrakar,1,naresh-saxena,4,naseem-ajmeri,1,naseem-azizi,1,naseem-nikhat,1,naseer-turabi,1,nasir-kazmi,8,naubahar-sabir,2,naukari,1,navin-c-chaturvedi,1,navin-mathur-pancholi,1,nazeer-akbarabadi,16,nazeer-baaqri,1,nazeer-banarasi,6,nazim-naqvi,1,nazm,191,nazm-subhash,3,neeraj-ahuja,1,neeraj-goswami,2,new-year,21,nida-fazli,34,nirankar-dev-sewak,2,nirmal-verma,3,nirmala,5,nirmla-garg,1,nizam-fatehpuri,26,nomaan-shauque,4,nooh-aalam,2,nooh-narvi,2,noon-meem-rashid,2,noor-bijnauri,1,noor-indori,1,noor-mohd-noor,1,noor-muneeri,1,noshi-gilani,1,noushad-lakhnavi,1,nusrat-karlovi,1,obaidullah-aleem,5,omprakash-valmiki,1,omprakash-yati,8,pandit-dhirendra-tripathi,1,pandit-harichand-akhtar,3,parasnath-bulchandani,1,parveen-fana-saiyyad,1,parveen-shakir,12,parvez-muzaffar,6,parvez-waris,3,pash,8,patang,13,pawan-dixit,1,payaam-saeedi,1,perwaiz-shaharyar,2,phanishwarnath-renu,2,poonam-kausar,1,prabhudayal-shrivastava,1,pradeep-kumar-singh,1,pradeep-tiwari,1,prakhar-malviya-kanha,2,pratap-somvanshi,7,pratibha-nath,1,prayag-shukl,3,prem-lal-shifa-dehlvi,1,prem-sagar,1,purshottam-abbi-azar,2,pushyamitra-upadhyay,1,qaisar-ul-jafri,3,qamar-ejaz,2,qamar-jalalabadi,3,qamar-moradabadi,1,qateel-shifai,8,quli-qutub-shah,1,quotes,2,raaz-allahabadi,1,rabindranath-tagore,3,rachna-nirmal,3,raghuvir-sahay,4,rahat-indori,31,rahbar-pratapgarhi,2,rahi-masoom-raza,6,rais-amrohvi,2,rajeev-kumar,1,rajendra-krishan,1,rajendra-nath-rehbar,1,rajesh-joshi,1,rajesh-reddy,7,rajmangal,1,rakesh-rahi,1,rakhi,6,ram,38,ram-meshram,1,ram-prakash-bekhud,1,rama-singh,1,ramapati-shukla,4,ramchandra-shukl,1,ramcharan-raag,2,ramdhari-singh-dinkar,8,ramesh-chandra-shah,1,ramesh-dev-singhmaar,1,ramesh-kaushik,2,ramesh-siddharth,1,ramesh-tailang,2,ramesh-thanvi,1,ramkrishna-muztar,1,ramkumar-krishak,3,ramnaresh-tripathi,1,ranjan-zaidi,2,ranjeet-bhattachary,2,rasaa-sarhadi,1,rashid-kaisrani,1,rauf-raza,4,ravinder-soni-ravi,1,rawan,4,rayees-figaar,1,raza-amrohvi,1,razique-ansari,13,rehman-musawwir,1,rekhta-pataulvi,7,republic-day,2,review,12,rishta,2,rishte,1,rounak-rashid-khan,2,roushan-naginvi,1,rukhsana-siddiqui,2,saadat-hasan-manto,9,saadat-yaar-khan-rangeen,1,saaz-jabalpuri,1,saba-bilgrami,1,saba-sikri,1,sabhamohan-awadhiya-swarn-sahodar,2,sabir-indoree,1,sachin-shashvat,2,sadanand-shahi,3,saeed-kais,2,safar,1,safdar-hashmi,5,safir-balgarami,1,saghar-khayyami,1,saghar-nizami,2,sahir-hoshiyarpuri,1,sahir-ludhianvi,20,sajid-hashmi,1,sajid-premi,1,sajjad-zaheer,1,salahuddin-ayyub,1,salam-machhli-shahri,2,saleem-kausar,1,salman-akhtar,4,samar-pradeep,6,sameena-raja,2,sandeep-thakur,3,sanjay-dani-kansal,1,sanjay-grover,3,sansmaran,9,saqi-faruqi,2,sara-shagufta,5,saraswati-kumar-deepak,2,saraswati-saran-kaif,2,sardaar-anjum,2,sardar-aasif,1,sardi,3,sarfaraz-betiyavi,1,sarshar-siddiqui,1,sarveshwar-dayal-saxena,11,satire,18,satish-shukla-raqeeb,1,satlaj-rahat,3,satpal-khyal,1,seema-fareedi,1,seemab-akbarabadi,2,seemab-sultanpuri,1,shabeena-adeeb,2,shad-azimabadi,2,shad-siddiqi,1,shafique-raipuri,1,shaharyar,21,shahid-anjum,2,shahid-jamal,2,shahid-kabir,3,shahid-kamal,1,shahid-mirza-shahid,1,shahid-shaidai,1,shahida-hasan,2,shahram-sarmadi,1,shahrukh-abeer,1,shaida-baghonavi,2,shaikh-ibrahim-zouq,2,shail-chaturvedi,1,shailendra,4,shakeb-jalali,3,shakeel-azmi,7,shakeel-badayuni,6,shakeel-jamali,5,shakeel-prem,1,shakuntala-sarupariya,2,shakuntala-sirothia,2,shamim-farhat,1,shamim-farooqui,1,shams-deobandi,1,shams-ramzi,1,shamsher-bahadur-singh,5,shanti-agrawal,1,sharab,5,sharad-joshi,5,shariq-kaifi,5,shaukat-pardesi,1,sheen-kaaf-nizam,1,shekhar-astitwa,1,sher-collection,13,sheri-bhopali,2,sherjang-garg,2,sherlock-holmes,1,shiv-sharan-bandhu,2,shivmangal-singh-suman,6,shivprasad-joshi,1,shola-aligarhi,1,short-story,16,shridhar-pathak,3,shrikant-verma,1,shriprasad,5,shuja-khawar,1,shyam-biswani,1,sihasan-battisi,5,sitaram-gupta,1,sitvat-rasool,1,siyaasat,8,sohan-lal-dwivedi,3,story,54,subhadra-kumari-chouhan,9,subhash-pathak-ziya,1,sudarshan-faakir,3,sufi,1,sufiya-khanam,1,suhaib-ahmad-farooqui,1,suhail-azad,1,suhail-azimabadi,1,sultan-ahmed,1,sultan-akhtar,1,sumitra-kumari-sinha,1,sumitranandan-pant,2,surajpal-chouhan,2,surendra-chaturvedi,1,suryabhanu-gupt,2,suryakant-tripathi-nirala,5,sushil-sharma,1,swapnil-tiwari-atish,2,syed-altaf-hussain-faryad,1,syeda-farhat,2,taaj-bhopali,1,tahir-faraz,3,tahzeeb-hafi,2,taj-mahal,2,talib-chakwali,1,tanhai,1,teachers-day,4,tilok-chand-mehroom,1,topic-shayari,33,toran-devi-lali,1,trilok-singh-thakurela,3,triveni,7,tufail-chaturvedi,3,umair-manzar,1,umair-najmi,1,upanyas,73,urdu,9,vasant,9,vigyan-vrat,1,vijendra-sharma,1,vikas-sharma-raaz,1,vilas-pandit,1,vinay-mishr,3,viral-desai,2,viren-dangwal,2,virendra-khare-akela,9,vishnu-nagar,2,vishnu-prabhakar,5,vivek-arora,1,vk-hubab,1,vote,1,wada,13,wafa,20,wajida-tabssum,1,wali-aasi,2,wamiq-jaunpuri,4,waseem-akram,1,waseem-barelvi,11,wasi-shah,1,wazeer-agha,2,women,16,yagana-changezi,3,yashpal,3,yashu-jaan,2,yogesh-chhibber,1,yogesh-gupt,1,zafar-ali-khan,1,zafar-gorakhpuri,5,zafar-kamali,1,zaheer-qureshi,2,zahir-abbas,1,zahir-ali-siddiqui,5,zahoor-nazar,1,zaidi-jaffar-raza,1,zameer-jafri,4,zaqi-tariq,1,zarina-sani,2,zehra-nigah,1,zia-ur-rehman-jafri,74,zubair-qaisar,1,zubair-rizvi,1,
ltr
item
जखीरा, साहित्य संग्रह: Alif Laila - 37 लँगड़े आदमी की कहानी
Alif Laila - 37 लँगड़े आदमी की कहानी
https://1.bp.blogspot.com/-96s834Wl4O4/YKjyfsI-mxI/AAAAAAAAWu8/2DV7TDKrTvsRgeDvk8BNBVIPqAGxED7dQCPcBGAYYCw/s640/Alif%2BLaila.jpg
https://1.bp.blogspot.com/-96s834Wl4O4/YKjyfsI-mxI/AAAAAAAAWu8/2DV7TDKrTvsRgeDvk8BNBVIPqAGxED7dQCPcBGAYYCw/s72-c/Alif%2BLaila.jpg
जखीरा, साहित्य संग्रह
https://www.jakhira.com/2019/07/alif-laila-37-langde-aadmi-ki-kahani.html
https://www.jakhira.com/
https://www.jakhira.com/
https://www.jakhira.com/2019/07/alif-laila-37-langde-aadmi-ki-kahani.html
true
7036056563272688970
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Read More Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy Table of Content