एक साग़र भी इनायत न हुआ याद रहे - ब्रज नारायण चकबस्त

एक साग़र भी इनायत न हुआ याद रहे

एक साग़र भी इनायत न हुआ याद रहे
साक़िया जाते हैं, महफ़िल तेरी आबाद रहे

बाग़बाँ दिल से वतन को ये दुआ देता है,
मैं रहूँ या न रहूँ ये चमन आबाद रहे

मुझको मिल जाय चहकने के लिए शाख़ मेरी,
कौन कहता है कि गुलशन में न सय्याद रहे

बाग़ में लेके जनम हमने असीरी झेली,
हमसे अच्छे रहे जंगल में जो आज़ाद रहे - ब्रज नारायण चकबस्त
मायने
इनायत = दया न मिली, भीख न मिली, साक़िया = शराब पिलाने वाला/वाली, बाग़बाँ = माली/बाग की रखवाली करने वाला, असीरी= कैद, सय्याद = शिकारी/कैद करने वाला


ek sagar bhi inayat n hua yaad rahe

ek sagar bhi inayat n hua yaad rahe
sakiya jate hai, mahfil teri aabad rahe

bagbaan dil se watan ko ye dua deta hai
mai rahu ya na hu ye chaman aabad rahe

mujhko mil jay chahkane ke liye shakh meri
koun kahta hai ki gulshan me n sayyad rahe

baagh me leke janam hamne asisi jheli
hamse achche rahe jangal me jo aazad rahe - Braj Narayan Chakbast

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