ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए - शेरी भोपाली

ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए कि मंज़िल दूर हो और रास्ते में शाम हो जाए - शेरी भोपाली

ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए

ग़ज़ब है जुस्तजू-ए-दिल का ये अंजाम हो जाए
कि मंज़िल दूर हो और रास्ते में शाम हो जाए

वही नाला वही नग़्मा बस इक तफ़रीक़-ए-लफ़्ज़ी है
क़फ़स को मुंतशिर कर दो नशेमन नाम हो जाए

तसद्दुक़ इस्मत-ए-कौनैन उस मज्ज़ूब-ए-उल्फ़त पर
जो उन का ग़म छुपाए और ख़ुद बद-नाम हो जाए

ये आलम हो तो उन को बे-हिजाबी की ज़रूरत क्या
नक़ाब उठने न पाए और जल्वा आम हो जाए

ये मेरा फ़ैसला है आप मेरे हो नहीं सकते
मैं जब जानूँ कि ये जज़्बा मिरा नाकाम हो जाए

अभी तो दिल में हल्की सी ख़लिश महसूस होती है
बहुत मुमकिन है कल इस का मोहब्बत नाम हो जाए

जो मेरा दिल न हो 'शेरी' हरीफ़ उन की निगाहों का
तो दुनिया भर में बरपा इंक़लाब-ए-आम हो जाए - शेरी भोपाली
मायने
क़फ़स = पिंजरा/क़ैदख़ाना, मुंतशिर = बिखरा हुआ, तसद्दुक़ = बलिदान


शेरी भोपाली
भोपाल हमेशा से शायरी के लिए जाना जाता है जिनमे से ताज भोपाली, शेरी भोपाली, कैफ भोपाली, मंज़र भोपाली भी है । आपमें से ही शेरी भोपाली जिनका असल नाम मोहम्मद असग़र खान था । आपका जन्म आगरा में 1914 में हुआ । पर आप असल में भोपाल से ताल्लुक रखते है । आपने शायरी में शेरी तखल्लुस उपयोग करना शुरू किया । आप मेल संदेलवी के शिष्य रहे और आपने ज़की वारसी का भी अपनी शायरी में अनुशरण किया । आप अपनी शायरी के हुनर का दिल्ली की आबो-हवा की देन कहते है आपका कहना था कि दिल्ली उनकी शायरी की माँ है । आपके प्रकाशित ग़ज़ल संग्रहों में शब्-ऐ-ग़ज़ल प्रमुख है जो की इदारा-इ-ईशात-क़ुरआन से उर्दू में छपा था ।
आपका 9 जुलाई 1991 को भोपाल में निधन हुआ ।

ghazab hai justuju-e-dil kā ye anjam ho jaaye

ghazab hai justuju-e-dil kā ye anjam ho jaaye
ki manzil duur ho aur rāste meñ shaam ho jaaye

vahi naala vahi naġhma bas ik tafrīq-e-lafzī hai
qafas ko muntashir kar do nasheman naam ho jaaye

tasadduq ismat-e-kaunain us majzūb-e-ulfat par
jo un kā ġham chhupā.e aur ḳhud bad-nām ho jaaye

ye aalam ho to un ko be-hijābī kī zarūrat kya
naqāb uThne na paa.e aur jalva aam ho jaaye

ye merā faisla hai aap mere ho nahīñ sakte
maiñ jab jānūñ ki ye jazba mirā nākām ho jaaye

abhī to dil meñ halkī sī ḳhalish mahsūs hotī hai
bahut mumkin hai kal is kā mohabbat naam ho jaaye

jo merā dil na ho 'sherī' harīf un kī nigāhoñ ka
to duniyā bhar meñ barpā inqalāb-e-ām ho jaaye - Sheri Bhopali

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