शाम का वक्त है शाख़ों को हिलाता क्यूँ है? - कृष्ण कुमार नाज़

शाम का वक्त है शाख़ों को हिलाता क्यूँ है ?

शाम का वक्त है शाख़ों को हिलाता क्यूँ है ?
तू थके मांदे परिन्दों को उड़ाता क्यूँ है ?

वक्त को कौन भला रोक सका है पगले,
सूइयां घड़ियों की तू पीछे घुमाता क्यूँ है ?

स्वाद कैसा है पसीने का, ये मज़दूर से पूछ
छांव में बैठ के अंदाज लगाता क्यूँ है ?

मुझको सीने से लगाने में है तौहीन अगर
दोस्ती के लिए फिर हाथ बढ़ाता क्यूँ है ?

प्यार के रूप हैं सब, त्याग तपस्या पूजा
इनमें अंतर का कोई प्रश्न उठाता क्यूँ है ?

मुस्कुराना है मेरे होंठों की आदत में शुमार
इसका मतलब मेरे सुख दुख से लगाता क्यूँ है ?

देखना चैन से सोना न कभी होगा नसीब
ख़्वाब की तू कोई तस्वीर बनाता क्यूँ है ? - कृष्ण कुमार नाज़


Sham ka waqt hai shakho ko hilata kyun hai

Sham ka waqt hai shakho ko hilata kyun hai
tu thake mande parindo ko udata kyun hai?

waqt ko koun bhala rok saka hai pagle,
suiya ghadiyo ki tu piche ghumata kyun hai

swad kaisa hai pasine ka, ye majdoor se puch
chhanv me baith ke andaj lagata kyun hai?

mujhko seene se lagane me hai touhin agar
dosti ke liye phir haath badata kyun hai?

payar ke roop hai sab, tyag, tapsya, pooja
inme antar ka koi prashan uthata kyun hai?

muskurna hai mere hotho ki aadat me shumar
iska matlab mere sukh-dukh se lagata kyun hai?

dekhna chain se sona n kabhi hoga naseeb
khwab ki tu tasweer banata kyun hai? - Krishna Kumar Naaz

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