लम्हों का खज़ाना - मीना कुमारी नाज़

लम्हों का खज़ाना कितनी लालची हूँ मै कितने ढेर सारे लम्हे जमा कर रखे है फिर भी बौखलाई हुई ढूंढती फिर रही हूँ - मीना कुमारी नाज़

लम्हों का खज़ाना

कितनी लालची हूँ मै
कितने ढेर सारे लम्हे जमा कर रखे है
फिर भी
बौखलाई हुई
ढूंढती फिर रही हूँ
चुन-चुनकर इन्हें समेटती फिर रही हूँ
कही 'यह' न छुट जाए
कही 'वह' छुट न जाए
यह सबके सब
इकठ्ठे करके
अपने आप में भर लूं
छुपा लू
किसी को न दूं
कंजूस की तरह
इन्हें बस
तहखानो में रख दू...
कितनी लालची हूँँ ना मै?
- मीना कुमारी नाज़


lamho ka khazana

kitni lalchi hu mai
kitne dher sare lamhe jamaa kar rakhe hai
fir bhi
boukhlaai hui
dhundhti fir rahi hun
chun-chunkar inhe sametti fir rahi hun
kahi 'yah' chhut n jaye
kahi 'wah' chhut n jaye
yah sabke sab
ikththe karke
apne aap me bhar lun
chhupa lu
kisi ko n dun
kanjud ki tarah
inhe bas
tahkhano me rakh du...
kitni lalchi hu na mai?
- Meena Kumari Naaz

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