फिर एक दिन ऐसा आयेगा
फिर एक दिन ऐसा आयेगाआँखों के दिये बुझ जायेंगे
हाथों के कँवल कुम्हलायेंगे
और बर्ग-ए-ज़बाँ से नुक्तो-सदा
की हर तितली उड़ जायेगी!
इक काले समन्दर की तह में
कलियों की तरह से खिलती हुई
फूलों की तरह से हँसती हुई
सारी शक्लें खो जायेंगी
खूँ की गर्दिश, दिल की धड़कन
सब रागनियाँ सो जायेंगी
और नीली फ़ज़ा की मख़मल पर
हँसती हुई हीरे की ये कनी
ये मेरी जन्नत मेरी ज़मीं
इस की सुबहें इस की शामें
बेजाने हुए बेसमझे हुए
इक मुश्त ग़ुबार-ए-इन्साँ पर
शबनम की तरह रो जायेंगी
हर चीज़ भुला दी जायेगी
यादों के हसीं बुतख़ाने से
हर चीज़ उठा दी जायेगी
फिर कोई नहीं ये पूछेगा
'सरदार' कहाँ है महफ़िल में!
लेकिन मैं यहाँ फिर आऊँगा
बच्चों के दहन से बोलूँगा
चिड़ियों की ज़बाँ से गाऊँगा
जब बीज हँसेंगे धरती में
और कोंपलें अपनी उँगली से
मिट्टी की तहों को छेड़ेंगी
मैं पत्ती-पत्ती कली-कली
अपनी आँखें फिर खोलूँगा
सरसब्ज़ हथेली पर लेकर
शबनम के क़तरे तोलूँगा
मैं रंग-ए-हिना, आहंग-ए-ग़ज़ल,
अन्दाज़-ए-सुख़न बन जाऊँगा
रुख़सार-ए-उरूस-ए-नौ की तरह
हर आँचल से छन जाऊँगा
जाड़ों की हवायें दामन में
जब फ़स्ल-ए-खिज़ा को लायेंगी
रहरू के जवाँ क़दमों के तले
सूखे हुए पत्तों से मेरे
हँसने की सदायें आयेंगी
धरती की सुनहरी सब नदियाँ
आकाश की नीली सब झीलें
हस्ती से मेरी भर जायेंगी!
और सारा ज़माना देखेगा
हर क़िस्सा मेरा अफ़साना है
हर आशिक़ है सरदार यहाँ
हर माशूक़ा सुल्ताना है
मैं एक गुरेज़ाँ लम्हा हूँ
अय्याम के अफ़्सूँखाने में
मैं एक तड़पता क़तरा हूँ
मसरूफ़-ए-सफ़र जो रहता है
माज़ी की सुराही के दिल से
मुस्तकबिल के पैमाने में!
मैं सोता हूँ और जागता हूँ
और जाग के फिर सो जाता हूँ
सदियों का पुराना खेल हूँ मैं
मैं मर के अमर हो जाता हूँ ! - अली सरदार जाफ़री
मायने
नुक्तो-सदा = अभिव्यक्ति, ग़ुबार-ए-इन्साँ = इंसानों की भीड़, दहन = मुह, रंग-ए-हिना = मेहंदी के रंग, आहंग-ए-ग़ज़ल = ग़ज़ल का अर्थ/ग़ज़ल का इरादा, फ़स्ल-ए-खिज़ा = पतझड़ की फसल, सुल्ताना = शायर की पत्नी, मुस्तकबिल = मंजिल, मसरूफ़-ए-सफ़र = सफर में व्यस्त
phir ek din aisa aayega
phir ek din aisa aayegaaankho ke diye bujh jayenge
hatho ke kanwal kumhlayenge
aur barg-e-zabaan se nataq-wa-sadaa
ki har teetli ud jaayegi
ek kaale samandar ki tah me
kaliyo ki tarah se khilti hui
phoolo ki tarah se hasti hui
saari shakle kho Jayengi
khoon ki gardish, dil ki dhadkan
sab raagniya so Jayengi
aur neeli fazaa ki makhmal par
hasti hui heere ki ye kani
ye meri jannat, meri zameeN
iss ki subahe, iss ki shaame
bey jaaney huey, bey samjhey hue
ik musht gubaar-e-insaaN par
shabnam ki tarah ro Jayengi
har cheez bhula di jaayegi
yaado ke haseen butkhaane se
har cheez uthaa di jaayegi
phir koi nahi ye puchhega
SARDAR kahaa hai mahfil mein
lekin mai yahaa phir aaunga
bachcho ke dahan se bolunga
chidiyo ki zabaan se gaaunga
jab beej hasenge dharti me
aur kople apni ungli se
mitti ki taho ko chhedengi
me patti patti, kali kali
apni aankhe phir kholunga
sar sabz hatheli par le kar
shabnam ke qatre tolunga
me rang-e-heena, aahang-e-ghazal
andaaz-e-sukhan ban jaaunga
rukhsaar-e-urus-e-nau ki tarah
har aanchal se chhan jaaunga
jaado ki hawaaye daaman me
jab fasal-e-khizaa ko laayengi
rahroo ke jawaa kadamo ke tale
sukhe hue patto se mere
hasne ki sadaaye aayegi
dharti ki sunhari sab nadiyaa
aakash ki neeli sab jhele
hasti se meri bhar Jayengi
aur saraa zamaana dekhega
har kissa mera afsaana hai
har aashiq hai sardaar yahaa
har maashuqa sultanaa hai!
mai ek gurezaa lamha Hu
ayyam ke afsoo kahani mai
mai ek tadpta katra hu
masroof-e-safar jo rahta hai
maazi ki suraahi key dil se
mustaqbil key paimaney me!
mai sotaa hu aur jaagta hoo
aur jaag key phir so jaata hoo
sadiyo ka purana khel hoo mai
mai mar key amar ho jaata hu! - Ali Sardar Jafri
Lajawa...Behtariin Nazm...