आप को देखकर देखता रह गया
इस ग़ज़ल की ज़मीन पर वसीम बरेलवी साहब ने भी आपको देखकर देखता रह गया ग़ज़ल लिखी है |आप को देखकर देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया
उनकी आँखों से कैसे छलकने लगा
मेरे होंठों पे जो माजरा रह गया
ऐसे बिछड़े सभी रात के मोड़ पर
आख़री हमसफ़र रास्ता रह गया
सोच कर आओ कू-ए-तमन्ना है ये
जानेमन जो यहाँ रह गया रह गया - अज़ीज़ क़ैसी
aapko dekhkar dekhta rah gaya
aapko dekhkar dekhta rah gayakya kahu aur kahne ko kya rah gaya
unki aankho se kaise chalkane laga
mere hotho pe jo mazra rah gaya
aise bhichhde sabhi raat ke mod par
aakhri hamsafar rasta rah gaya
soch kar aao ku-e-tammna hai ye
janeman jo yaha rah gaya rah gaya - Aziz Qaisi