आपकी याद आती रही रात भर
गमन फिल्म जो कि सन 1978 में आई थी, इसका एक गीत सीने में जलन शहरयार साहब का लिखा हुआ काफी मशहूर हुआ था और एक अन्य गीत “आपकी याद आती रही रात भर” मखदूम मोइउद्दीन का लिखा हुआ है वैसे यह गीत सुनकर फैज़ अहमद फैज़ साहब की ग़ज़ल “आपकी याद आती रही रात भर" की याद आती है, दरअसल फैज़ साहब की यह ग़ज़ल "मखदूम की याद में " नाम से प्रसिद्द है और फैज़ साहब ने उक्त ग़ज़ल के पहले शेर को लेकर यह ग़ज़ल लिखी | संयोग की बात देखिये यह फिल्म 1978 में आई थी और फैज़ साहब ने यह ग़ज़ल भी 1978 में ही मास्को में लिखी थी | लीजिए ये दोनों गज़ले पेश है जिसमे पहली ग़ज़ल मखदूम साहब की जो कि गमन फिल्म में ली गयी है और दूसरी फैज़ साहब की ग़ज़ल है :आपकी याद आती रही रात भर,
चश्मे-नाम मुस्कुराती रही रात भर |
रात भर दर्द की शम्मा जलती रही,
गम की लौ थरथराती रही रात भर |
बांसुरी की सुरीली सुहानी सदा,
याद बन-बन के आती रही रात भर |
याद की चाँद दिल में उतरती रही,
चाँदनी जगमगाती रही रात भर |
कोई दीवाना गलियों में फिरता रहा,
कोई आवाज़ आती रही रात भर |- मखदूम मोइउद्दीन
मखदूम की याद में - 1
इसी तर्ज़ पर फैज़ साहब की ग़ज़लआपकी याद आती रही रात-भर
चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर
गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम-ए-ग़म झिलमिलाती रही रात-भर
कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन
कोई तस्वीर गाती रही रात-भर
फिर सबा साय-ए-शाख़े-गुल के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात-भर
जो न आया उसे कोई ज़ंजीरे-दर
हर सदा पर बुलाती रही रात-भर
एक उम्मीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात-भर – फैज़ अहमद फैज़
मास्को, सितम्बर, १९७८
मायनेपैरहन = वस्त्र, सबा = हवा, साय-ए-शाख़े-गुल = फुल की टहनी की छाया, ज़ंजीरे-दर = दरवाजे की सांकल
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Aapki yaad aati rahi yaad bhar - Makhdoom Mohiuddin
Aapki yaad aati rahi yaad bharChashme-naam Muskurati rhai raat bhar
Rat bhar dard ki shamma jalti rahi,
gham ki lou thatharati rahi raat bhar
Basuri ki surili suhani sada
yaad ban-ban ke aati rahi raat bhar
yaad ki chand dil me utarati rahi
chandni jagmagati rahi raat bhar
koi dewana galiyo me firata raha
koi aawaz aati rahi raat bhara- Makhdoom Mohiuddin
aapki yaad aati rahi raat bhar - Faiz Ahmad Faiz
aapki yaad aati rahi raat bharchandni dil dukhati rahi raat bhar
gah jalti rahi, gaah bujhti hui
shaam-e-gham jhilmilati rahi raat bhar
koi khushboo badlati rahi perahan
koi tasweer gati rahi raat bhat
fir saba say-e-shakhe-gul ke tale
koi kissa sunati rahi raat bhar
jo n aaya use koi zanzire-dar
har sada par bulati rahi raat bhar
ek ummid se dil bahlata raha
ik tamnna satati rahi raat bhar - Faiz Ahmad Faiz
आपकी याद आती रही रात भर
नींद नखरे दिखाती रही रात भर
अक्स दीपक का दरिया में पड़ता रहा
रौशनी झिलमिलाती रही रात भर
चाँद उतरा हो आँगन में जैसे मेरे
शब निगाहों को भाती रही रात भर
मैने तुझको भुलया तो दिल से मगर
याद सीना जलाती रही रात भर
वो मिला ही कहां और चला भी गया
बस हवा दर हिलाती रही रात भर
आपका अपना
पुरूषोत्तम अब्बी "आज़र"
वाह वाह