हो तअल्लुक़ तुझसे जब तक ज़िन्दगी बाक़ी रहे - अहमद निसार

हो तअल्लुक़ तुझसे जब तक ज़िन्दगी बाक़ी रहे दोस्ती बाक़ी नहीं तो दुश्मनी बाक़ी रहे

हो तअल्लुक़ तुझसे जब तक ज़िन्दगी बाक़ी रहे

हो तअल्लुक़ तुझसे जब तक ज़िन्दगी बाक़ी रहे
दोस्ती बाक़ी नहीं तो दुश्मनी बाक़ी रहे

हो न जाऊँ मैं कहीं मग़रूर ए मेरे ख़ुदा
यूँ मुकम्मल कर मुझे के कुछ कमी बाक़ी रहे

सबके हिस्से में बराबर के उजाले आएँगे
घर के इन बूढ़े दियों में रोशनी बाक़ी रहे

ये तसव्वुर ख़ूबसूरत है मगर मुमकिन नहीं
चाँद भी छत पर रहे और धूप भी बाक़ी रहे

ख़ाक की पोशाक में हम मस्त हैं अहमद निसार
है यही सरमाया अपना बस यही बाक़ी रहे - अहमद निसार


ho taalluk tujhse jab tak zindagi baki rahe

ho taalluk tujhse jab tak zindagi baki rahe
dosti baaki nahi to dushmani baki rahe

ho n jau mai kahi magroor ae mere khuda
yun mukmmal kar mujhe ke kuchh kami baki rahe

sabke hisse mein barabar ke ujale aayenge
ghar ke in budhe diyon me roshni baki rahe

ye taswwur khubsurat hai magar mumkin nahin
chaand bhi chhat par rahe aur dhoop bhi baki rahe

khaaq ki poshak me ham mast hai ahmad nisar
hai yahi sarmaya apna bas yahi baki rahi Ahmad Nisar

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