हिंद के गुलशन में जब आती है होली की बहार - नज़ीर अकबराबादी


हिंद के गुलशन में जब आती है होली की बहार

हिन्द के गुलशन में जब आती है होली की बहार।
जांफिशानी चाही कर जाती है होली की बहार।।

एक तरफ से रंग पड़ता, इक तरफ उड़ता गुलाल।
जिन्दगी की लज्जतें लाती हैं, होली की बहार।।

जाफरानी सजके चीरा आ मेरे शाकी शिताब।
मुझको तुम बिन यार तरसाती है होली की बहार।।

तू बगल में हो जो प्यारे, रंग में भीगा हुआ।
तब तो मुझको यार खुश आती है होली की बहार।।

और हो जो दूर या कुछ खफा हो हमसे मियां।
तो काफिर हो जिसे भाती है होली की बहार।।

नौ बहारों से तू होली खेलले इस दम नजीर।
फिर बरस दिन के उपर है होली की बहार।। - नज़ीर अकबराबादी
मायने
ज़फिशानी = पैरहन/वस्त्र


hind ke gulshan me jab aati hai holi ki bahar

hind ke gulshan me jab aati hai holi ki bahar
zafishani chahi kar jati hai holi ki bahar

ek taraf se rang udta, ek taraf udta gulal
zindagi ki lajjte lati hai, holi ki bahar

zafrani sajke cheera aa mere shaki shitab
mujhko tujh bin yaar tarsati hai holi ki bahar

tu bagal me ho jo pyare, rang me bhiga hua
tab to mujhko yaar khush aati hai holi ki bahar

aur ho jo door ya kuch khafa ho hamse miyaN
to kafir ho jise bhati hai holi ki bahar

nau baharo se tu holi khel le is dam Nazeer
phir baras din ke upar hai holi ki bahar - Nazeer Akbarabadi
हिंद के गुलशन में जब आती है होली की बहार

1 Comments

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post