तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था - मिर्ज़ा ग़ालिब

तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था

तू दोस्त किसी का भी सितमगर न हुआ था
औरों पे है वो ज़ुल्म कि मुझ पर न हुआ था

छोड़ा मह-ए-नख़शब की तरह दस्त-ए-क़ज़ा ने
ख़ुर्शीद हुनूज़ उस के बराबर न हुआ था

तौफ़ीक़ ब-अंदाज़ा-ए-हिम्मत है अज़ल से
आँखों में है वो क़तरा कि गौहर न हुआ था

जब तक कि न देखा था क़द-ए-यार का आलम
मैं मो'तक़िद-ए-फ़ित्ना-ए-महशर न हुआ था

मैं सादा-दिल आज़ुर्दगी-ए-यार से ख़ुश हूँ
या'नी सबक़-ए-शौक़ मुकर्रर न हुआ था

दरिया-ए-मआसी तुनुक-आबी से हुआ ख़ुश्क
मेरा सर-ए-दामन भी अभी तर न हुआ था

जारी थी 'असद' दाग़-ए-जिगर से मिरी तहसील
आतिश-कदा जागीर-ए-समुंदर न हुआ था - मिर्ज़ा ग़ालिब


tu dost kisi ka bhi sitamgar na hua tha

tu dost kisi ka bhi sitamgar na hua tha
auron pe hai wo zulm ki mujh par na hua tha

chhoda mah-e-nakhshab ki tarah dast-e-qaza ne
khurshid hunuz us ke barabar na hua tha

taufiq ba-andaza-e-himmat hai azal se
aankhon mein hai wo qatra ki gauhar na hua tha

jab tak ki na dekha tha qad-e-yar ka aalam
main mo'taqid-e-fitna-e-mahshar na hua tha

main sada-dil aazurdagi-e-yar se khush hun
yani sabaq-e-shauq mukarrar na hua tha

dariya-e-maasi tunuk-abi se hua khushk
mera sar-e-daman bhi abhi tar na hua tha

jari thi 'asad' dagh-e-jigar se meri tahsil
aatish-kada jagir-e-samundar na hua tha - Mirza Ghalib

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