ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपना
ज़िक्र उस परी-वश का और फिर बयाँ अपनाबन गया रक़ीब आख़िर था जो राज़-दाँ अपना
मय वो क्यूँ बहुत पीते बज़्म-ए-ग़ैर में या रब
आज ही हुआ मंज़ूर उन को इम्तिहाँ अपना
मंज़र इक बुलंदी पर और हम बना सकते
अर्श से उधर होता काश के मकाँ अपना
दे वो जिस क़दर ज़िल्लत हम हँसी में टालेंगे
बारे आश्ना निकला उन का पासबाँ अपना
दर्द-ए-दिल लिखूँ कब तक जाऊँ उन को दिखला दूँ
उँगलियाँ फ़िगार अपनी ख़ामा ख़ूँ-चकाँ अपना
घिसते घिसते मिट जाता आप ने अबस बदला
नंग-ए-सज्दा से मेरे संग-ए-आस्ताँ अपना
ता करे न ग़म्माज़ी कर लिया है दुश्मन को
दोस्त की शिकायत में हम ने हम-ज़बाँ अपना
हम कहाँ के दाना थे किस हुनर में यकता थे
बे-सबब हुआ 'ग़ालिब' दुश्मन आसमाँ अपना - मिर्ज़ा ग़ालिब
मायने
परी-वश = सुन्दर परी की तरह, राजदा = भेदी, मित्र, बज्मे-गैर = रकीब की महफ़िल, रकीब = प्रतिद्वंदी, अर्श = आसमान, जिल्लत = अपमान, आशना = जाना-पहचाना, पासबां = दरबान, फिगार = जख्मी, खामा = कलम, खुचका = खून में डूबा हुआ, अबस = व्यर्थ, नंगे सिजदा से = माथा टेकने से आपसे हुए दागो से, संगे-आस्ता = दहलीज़ का पत्थर, गम्माजी = चुगली, दाना = बुद्धिमान, यकता = माहिर/अद्वितीय
zikr us pari-wash ka aur phir bayan apna
zikr us pari-wash ka aur phir bayan apnaban gaya raqib aaKHir tha jo raaz-dan apna
mai wo kyun bahut pite bazm-e-ghair mein ya rab
aaj hi hua manzur un ko imtihan apna
manzar ek bulandi par aur hum bana sakte
arsh se udhar hota kash ke makan apna
de wo jis qadar zillat hum hansi mein Talenge
bare aashna nikla un ka pasban apna
dard-e-dil likhun kab tak jaun un ko dikhla dun
ungliyan figar apni KHama KHun-chakan apna
ghiste ghiste miT jata aap ne abas badla
nang-e-sajda se mere sang-e-astan apna
ta kare na ghammazi kar liya hai dushman ko
dost ki shikayat mein hum ne ham-zaban apna
hum kahan ke dana the kis hunar mein yakta the
be-sabab hua 'Ghalib' dushman aasman apna - Mirza Ghalib