प्यार को सदियों के, एक लम्हे की नफ़रत खा गई
प्यार को सदियों के, एक लम्हे की नफ़रत खा गईइक इबादतगाह यह गन्दी सियासत खा गई
मुस्तक़िल फांको ने चेहरों की बशाशत छीन ली
फुल-से मासूम बच्चो को भी ग़ुरबत खा गई
ऐश कोशी बन गई वझे-जवाले-सल्तनत
बेहिसी कितने शहंशाहो की अज़मत खा गई
आज मैंने अपने ग़म का उस से शिकवा कर दिया
एक लगजिश जिन्दगी भर की इबादत खा गई
झुक के वह गैरो के आगे खुश तो लगता था मगर
उसकी खुद्दारी को खुद उसकी नदामत खा गई - अनवर जलालपुरी
मायने
मुस्तक़िल फांके = लगातार भूखा रहना, बशाशत = खिला हुआ चेहरा, ग़ुरबत = गरीबी, ऐश कोशी = ऐश करने की आदत, वजहे-ज़वाले-सल्तनत = सल्तनत डूबने की वजह, बेहिसी = संवेदनहीनता, अज़मत = महानता, लगजिश = डगमगाना, नदामत = ग्लानी
pyar ko sadiyon ke, ek lamhe ki nafrat kha gai
pyar ko sadiyon ke, ek lamhe ki nafrat kha gaiik ibadatgaah yah gandi siyasat kha gai
mustliq faanko ne chehro ki bashashat chheen li
phool-se masoom bachcho ko bhi gurabat kha gai
aish koshi ban gai wajhe-jawale-saltnat
behisi kitne shahshaho ki azmat kha gai
aaj maine apne gham ka us se shikwa kar diya
ek lagzish jindgi bhar ki ibadat gai
jhuk ke wah gairo ke aage khush to lagta tha magar
uski khuddari ko khud uski nadamat kha gai - Anwar Jalalpuri