कभी खुद अपने हाथो से प्याले टूट जाते है - अशोक मिज़ाज

कभी खुद अपने हाथो से प्याले टूट जाते है कभी पीने पिलाने मे ये शीशे टूट जाते है बहुत कम लोग ऐसे है, जिन्हें रहजन मिले होंगे ज्यादातर मुसाफ़िर को मुसाफ़िर लुट जाते है

कभी खुद अपने हाथो से प्याले टूट जाते है

कभी खुद अपने हाथो से प्याले टूट जाते है
कभी पीने पिलाने मे ये शीशे टूट जाते है

हम इस धरती के वासी है अगर टूटे तो क्या ग़म है
फलक पर हमने देखा है सितारे टूट जाते है

बहुत कम लोग ऐसे है, जिन्हें रहजन मिले होंगे
ज्यादातर मुसाफ़िर को मुसाफ़िर लुट जाते है

वो पत्थर टुकड़े-टुकड़े हो गया जो हमसे कहता था
जो शीशे जैसे होते है वो एक दिन टूट जाते है

कदम रुकने नहीं देना, सफ़र में ऐसा होता है
नए छले उभरते है पुराने फूट जाते है - अशोक मिज़ाज


kabhi khud apne hatho se pyale tut jate hai

kabhi khud apne hatho se pyale tut jate hai
kabhi pine pilane me ye shishe tut jate hai

ham is dharti ke wasi hai agar tute to kya gham hai
falak par hamne dekha hai, sitare tut jate hai

bahut kam log aise hai, jinhe rahjan mile honge
jyadatar musafir ko musafir lut jate hai

wo patthar tukde-tukde ho gaya jo hamse kahta tha
jo shishe jaise hote hai wo ek din tut jate hai

kadam rukne nahi dena, safar me aisa hota hai
naye chaale ubharte hai purane fut jate hai - Ashok Mizaj

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