खुली आँखों में सपना झाँकता है - परवीन शाकिर

खुली आँखों में सपना झाँकता है

खुली आँखों में सपना झाँकता है
वो सोया है कि कुछ कुछ जागता है

तिरी चाहत के भीगे जंगलों में
मिरा तन मोर बन के नाचता है

मुझे हर कैफ़ियत में क्यों न समझे
वो मेरे सब हवाले जानता है

मैं उसकी दस्तरस में हूँ मगर वो
मुझे तेरी रिज़ा से माँगता है

किसी के ध्यान में डूबा हुआ दिल
बहाने से मुझे भी टालता है - परवीन शाकिर
मायने
दस्तरस = पहुच


khuli aankho me sapna jhankta hai

khuli aankho me sapna jhankta hai
wo soya hai ki kuchh kuchh jagta hai

tiri chahat ke bhige janglo mein
mira tan mor ban ke nachta hai

mujhe har kaifiyat me kyo n samjhe
wo mere sab hawale janta hai

mai uski dastras me hun magar wo
mujhe teri riza se mangta hai

kisi ke dhyan me duba hua dil
bahane se mujhe bhi talta hai - parveen shakir

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