वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है - जावेद अख़्तर

वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है

वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है
जमीं सूरज की उंगलियों से फिसल रही है

जो मुझको जिन्दा जला रहे है वो बेखबर है
कि मेरी जंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है

मै क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन
मेरे लहू से तुम्हारी दिवार गल रही है

न जलने पाते थे जिसके चूल्हे भी हर सवेरे
सुना है कल रात से वो बस्ती भी जल रही है

मैं जानता हूँ कि ख़ामुशी में ही मस्लहत है
मगर यही मस्लहत मिरे दिल को खल रही है

कभी तो इन्सान जिन्दगी की करेगा इज्ज़त
ये एक उम्मीद आज भी दिल में पल रही है - जावेद अख़्तर
मायने
मस्लहत = भलाई की सलाह / भला बुरा देखकर काम करना


wo dhal raha hai to ye rangat bhi badal rahi hai

wo dhal raha hai to ye rangat bhi badal rahi hai
zameen suraj ki ungliyo se fisal rahi hai

jo mujhko zinda jala rahe hai wo bekhabar hai
ki meri zanzeer dheere-dheere pighal rahi hai

mai qatl to ho gya tumhari gali me lekin
mere lahu se tumhari deewar gal rahi hai

n jalne pate the jiske chulhe bhi har sawere
suna hai kal raat se wo basti bhi jal rahi hai

kabhi to insaan zindgi ki karega ijjat
ye ek ummid aaj bhi dil me pal rahi hai - Javed Akhtar

Post a Comment

कृपया स्पेम न करे |

Previous Post Next Post