शोला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दो
शोला था जल-बुझा हूँ हवाएँ मुझे न दोमैं कब का जा चुका हूँ सदाएँ मुझे न दो
जो ज़हर पी चुका हूँ तुम्हीं ने मुझे दिया
अब तुम तो ज़िंदगी की दुआएँ मुझे न दो
ये भी बड़ा करम है सलामत है जिस्म अभी
ऐ ख़ुसरवान-ए-शहर क़बाएँ मुझे न दो
ऐसा न हो कभी कि पलट कर न आ सकूँ
हर बार दूर जा के सदाएँ मुझे न दो
कब मुझ को एतिराफ़-ए-मोहब्बत न था 'फ़राज़'
कब मैं ने ये कहा है सज़ाएँ मुझे न दो - अहमद फ़राज़
shola tha jal-bujha hun hawaen mujhe na do
shola tha jal-bujha hun hawaen mujhe na domain kab ka ja chuka hun sadaen mujhe na do
jo zahr pi chuka hun tumhin ne mujhe diya
ab tum to zindagi ki duaen mujhe na do
ye bhi bada karam hai salamat hai jism abhi
ai khusrawan-e-shahr qabaen mujhe na do
aisa na ho kabhi ki palat kar na aa sakun
har bar dur ja ke sadaen mujhe na do
kab mujh ko aetiraf-e-mohabbat na tha faraz
kab main ne ye kaha hai sazaen mujhe na do - Ahmad Faraz
कब मुझको ऐतराफे-मुह्हबत न था फ़राज़
कब मैंने यह कहा था, सजाए मुझे न दो !
सुन्दर शब्द रचना ।