तेरे इन सवालो का क्या जवाब दूँ
तेरे इन सवालो का क्या जवाब दूँअपने गुनाहों का क्या हिसाब दूँ
तुम जो रूठे तो मुझसे मेरा नसीब रूठ गया
लोग पूछते है अब में क्या जवाब दूँ
ज़माने भर का गम अपने दिल में छिपा रखा है
बस कोई पूछे तो गमो का एक सैलाब दूँ
एक खलिश है इस दिल में आज भी
तुम बस एक और गम दो तो में इन्कलाब दूँ
बन्दा परवरदिगार से तुम्हारे लिए दुआ करेगा
पर जाहिर तो करो, क्या तुम्हे जनाब दूँ
एक दिल है टुटा हूआ, और में हूँ बाकी
तुम चाहो तो तुम्हे दुआए बेहिसाब दूँ
उनकी वजह से नींदे कही उड़ चली है "देव"
तुम कहो तो अपने कुछ ख्वाब उधार दूँ - देवेंद्र देव
tere in sawalo ka kya jawab dun
tere in sawalo ka kya jawab dunapne gunaho ka kya hisab dun
tum jo ruthe to mujhe mera naseeb ruth gaya
log puchhte hai ab mai kya jawab dun
zamane bhar ka gham apne dil me chhipa rakha hai
bas koi puchhe to ghamo ka ek sailab dun
ek khalish hai is dil me aaj bhi
tum bas ek aur gham do to mai inqlaab dun
bandaa parwardigar se tumhare lie dua karega
par zahir to karo, kya tumhe janab dun
ek dil hai tuta hua, aur main hun baki
tum chaho to tumhe duaae behisab dun
unki wajah se neende kahi ud chali hai dev
tum kaho to apne kuchh khwab udhar dun - Devendra Dev
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.