कभी रहता हूँ मैं तन्हा, कभी महफ़िल में रहता हूँ - रंजीत भट्टाचार्य

कभी रहता हूँ मैं तन्हा, कभी महफ़िल में रहता हूँ

कभी रहता हूँ मैं तन्हा, कभी महफ़िल में रहता हूँ
मैं कच्चा ईश्क़ हूँ, पकने की खातिर दिल में रहता हूँ

पता मत पूछिए मेरा, मैं जब से हूँ समंदर में
कभी मौजों में रहता हूँ, कभी साहिल में रहता हूँ

उजालों से अदावत है मेरी अपनी जगह लेकिन
अंधेरा हूँ तो क्या, आखिर इसी कंदिल में रहता हूँ

ख़बर क्या मुझको मेरे हाल-ए- मौजूदा का ऐ लोगों
कि मैं खोया हुआ तारीख़-ओ-मुस्तकबिल में रहता हूँ

कभी रहता था मैं इक तंगदिल लड़की के जेहन में
मगर अब रेज़ा - रेज़ा मैं सभी के दिल में रहता हूँ - रंजीत भट्टाचार्य


kabhi rahta hun main tanha, kabhi mahfil mein rahta hun

kabhi rahta hun main tanha, kabhi mahfil mein rahta hun
mai kachcha ishq hun, pakne ki khatir dil mein rahta hun

pata mat puchhiye mera, main jab se hun samandar mein
kabhi mauzo mein rahta hun, kabhi sahil mein rahta hun

ujalo se adawat hai meri apni jagah lekin
andhera hun to kya, aakhir isi kandil mein rahta hun

khabar kya mujhko mere haal-e-mouzuda ka ae logo
ki main khoya hua taarikh-o-mustaqbil main mein rahta hun

kabhi rahta tha main ik tangdil ladki ke zehan mein
magar ab reza-reza main sabhi ke dil mein rahta hun - Ranjit Bhattacharya

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