मिले किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई - ज़फर गोरखपुरी

मिले किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई रहे अपनी ख़बर तो समझो ग़ज़ल हुई

मिले किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई

मिले किसी से नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई
रहे अपनी ख़बर तो समझो ग़ज़ल हुई

मिला के नज़रों को वो हया से फिर,
झुका ले कोई नज़र तो समझो ग़ज़ल हुई

इधर मचल कर उन्हें पुकारे जुनूँ मेरा,
भड़क उठे दिल उधर तो समझो ग़ज़ल हुई

उदास बिस्तर की सिलवटे जब तुम्हें चुभें,
न सो सको रात भर तो समझो ग़ज़ल हुई

वो बदगुमाँ हो तो शेर सूझे न शायरी,
वो महरबाँ हो ज़फ़र तो समझो ग़ज़ल हुई - ज़फ़र गोरखपुरी


mile kisi se nazar to samjho ghazal hui

mile kisi se nazar to samjho ghazal hui
rahe apni khabar to samjho ghazal hui

mila ke nazro ko wo haya se phir
jhuka le koi nazar to samjho ghazal hui

idhar machal kar unhe pukare junoon mera
bhadak uthe dil udhar to samjho ghazal hui

udas bistar ki silwate jab tumhe chubhen
n so sako raat bhar to samjho ghazal hui

wo badgumaan ho to sher sujhe n shayari
wo mahraban ho zafar to samjho ghazal hui - Zafar Gorakhpuri

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