ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है - वामिक़ जौनपुरी

ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है फ़साना और होता है हक़ीक़त और होती है

ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है

ज़बाँ तक जो न आए वो मोहब्बत और होती है
फ़साना और होता है हक़ीक़त और होती है

नहीं मिलते तो इक अदना शिकायत है न मिलने की
मगर मिल कर न मिलने की शिकायत और होती है

ये माना शीशा-ए-दिल रौनक़-ए-बाज़ार-ए-उल्फ़त है
मगर जब टूट जाता है तो क़ीमत और होती है

निगाहें ताड़ लेती हैं मोहब्बत की अदाओं को
छुपाने से ज़माने भर की शोहरत और होती है

ये माना हुस्न की फ़ितरत बहुत नाज़ुक है ऐ 'वामिक़'
मिज़ाज-ए-इश्क़ की लेकिन नज़ाकत और होती है


zaban tak jo na aae wo mohabbat aur hoti hai

zaban tak jo na aae wo mohabbat aur hoti hai
fasana aur hota hai haqiqat aur hoti hai

nahin milte to ek adna shikayat hai na milne ki
magar mil kar na milne ki shikayat aur hoti hai

ye mana shisha-e-dil raunaq-e-bazar-e-ulfat hai
magar jab tut jata hai to qimat aur hoti hai

nigahen tad leti hain mohabbat ki adaon ko
chhupane se zamane bhar ki shohrat aur hoti hai

ye mana husn ki fitrat bahut nazuk hai ai 'wamiq'
mizaj-e-ishq ki lekin nazakat aur hoti hai - wamiq jaunpuri

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