दिन में इस तरह मिरे दिल में समाया सूरज - आज़ाद गुलाटी

दिन में इस तरह मिरे दिल में समाया सूरज

दिन में इस तरह मिरे दिल में समाया सूरज
रात आँखों के उफ़ुक़ पर उभर आया सूरज

अपनी तो रात भी जलते ही कटी दिन की तरह
रात को सो तो गया दिन का सताया सूरज

सुब्ह निकला किसी दुल्हन की दमक रुख़ पे लिए
शाम डूबा किसी बेवा सा बुझाया सूरज

रात को मैं मिरा साया थे इकट्ठे दोनों
ले गया छीन के दिन को मिरा साया सूरज

दिन गुज़रता न था कम-बख़्त का तन्हा जलते
वादी-ए-शब से मुझे ढूँड के लाया सूरज

तू ने जिस दिन से मुझे सौंप दिया ज़ुल्मत को
तब से दिन में भी न मुझ को नज़र आया सूरज

आसमाँ एक सुलगता हुआ सहरा है जहाँ
ढूँढता फिरता है ख़ुद अपना ही साया सूरज

दिन को जिस ने हमें नेज़ों पे चढ़ाए रक्खा
शब को हम ने वही पलकों पे सुलाया सूरज - आज़ाद गुलाटी


din me is tarah dil mein samaya suraj

din mein is tarah mere dil mein samaya suraj
raat aankhon ke ufuq par ubhar aaya suraj

apni to raat bhi jalte hi kati din ki tarah
raat ko so to gaya din ka sataya suraj

subh nikla kisi dulhan ki damak rukh pe liye
sham duba kisi bewa sa bujhaya suraj

raat ko main mera saya the ikatthe donon
le gaya chhin ke din ko mera saya suraj

din guzarta na tha kam-bakht ka tanha jalte
wadi-e-shab se mujhe dhund ke laya suraj

tu ne jis din se mujhe saunp diya zulmat ko
tab se din mein bhi na mujh ko nazar aaya suraj

aasman ek sulagta hua sahra hai jahan
dhundhta phirta hai khud apna hi saya suraj

din ko jis ne hamein nezon pe chadhae rakkha
shab ko hum ne wahi palkon pe sulaya suraj - Azad Gulati

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