कहीं का ग़ुस्सा कहीं की घुटन उतारते हैं
कहीं का ग़ुस्सा कहीं की घुटन उतारते हैंग़ुरूर ये है काग़ज़ पे फ़न उतारते हैं
सुनी है टूटते पत्तों की हम ने सरगोशी
ये पेड़ पौदे भी क्या पैरहन उतारते हैं
सियासी लोगों से उम्मीद कैसी ख़ाक-ए-वतन
वतन का क़र्ज़ कहीं राहज़न उतारते हैं
ज़मीं पे रख दें अगर आप अपनी शमशीरें
तो हम भी अपने सरों से कफ़न उतारते हैं
उतर के रूह की गहराइयों में हम हर रोज़
ख़ुद अपनी क़ब्र में अपना बदन उतारते हैं
ख़ुदा करे कि सलामत रहें ये बूढ़े शजर
कि हम परिंदे यहीं पर थकन उतारते हैं - शाहिद जमाल
kahin ka ghussa kahin ki ghuTan utarte hain
kahin ka ghussa kahin ki ghuTan utarte hainghurur ye hai kaghaz pe fan utarte hain
suni hai TuTte patton ki hum ne sargoshi
ye peD paude bhi kya pairahan utarte hain
siyasi logon se ummid kaisi KHak-e-watan
watan ka qarz kahin rahzan utarte hain
zamin pe rakh den agar aap apni shamshiren
to hum bhi apne saron se kafan utarte hain
utar ke ruh ki gahraiyon mein hum har roz
KHud apni qabr mein apna badan utarte hain
KHuda kare ki salamat rahen ye buDhe shajar
ki hum parinde yahin par thakan utarte hain - Shahid Jamal