अन्वेषण
मैं ढूँढता तुझे था, जब कुंज और वन में।तू खोजता मुझे था, तब दीन के सदन में॥
तू 'आह' बन किसी की, मुझको पुकारता था।
मैं था तुझे बुलाता, संगीत में भजन में॥
मेरे लिए खड़ा था, दुखियों के द्वार पर तू।
मैं बाट जोहता था, तेरी किसी चमन में॥
बनकर किसी के आँसू, मेरे लिए बहा तू।
आँखे लगी थी मेरी, तब मान और धन में॥
बाजे बजाबजा कर, मैं था तुझे रिझाता।
तब तू लगा हुआ था, पतितों के संगठन में॥
मैं था विरक्त तुझसे, जग की अनित्यता पर।
उत्थान भर रहा था, तब तू किसी पतन में॥
बेबस गिरे हुओं के, तू बीच में खड़ा था।
मैं स्वर्ग देखता था, झुकता कहाँ चरन में॥
तूने दिया अनेकों अवसर न मिल सका मैं।
तू कर्म में मगन था, मैं व्यस्त था कथन में॥
तेरा पता सिकंदर को, मैं समझ रहा था।
पर तू बसा हुआ था, फरहाद कोहकन में॥
क्रीसस की 'हाय' में था, करता विनोद तू ही।
तू अंत में हंसा था, महमुद के रुदन में॥
प्रहलाद जानता था, तेरा सही ठिकाना।
तू ही मचल रहा था, मंसूर की रटन में॥
आखिर चमक पड़ा तू गाँधी की हड्डियों में।
मैं था तुझे समझता, सुहराब पीले तन में।
कैसे तुझे मिलूँगा, जब भेद इस कदर है।
हैरान होके भगवन, आया हूँ मैं सरन में॥
तू रूप कै किरन में सौंदर्य है सुमन में।
तू प्राण है पवन में, विस्तार है गगन में॥
तू ज्ञान हिन्दुओं में, ईमान मुस्लिमों में।
तू प्रेम क्रिश्चियन में, तू सत्य है सुजन में॥
हे दीनबंधु ऐसी, प्रतिभा प्रदान कर तू।
देखूँ तुझे दृगों में, मन में तथा वचन में॥
कठिनाइयों दुखों का, इतिहास ही सुयश है।
मुझको समर्थ कर तू, बस कष्ट के सहन में॥
दुख में न हार मानूँ, सुख में तुझे न भूलूँ।
ऐसा प्रभाव भर दे, मेरे अधीर मन में॥
रामनरेश त्रिपाठी
Anveshan
mai dhundhta tujhe tha,jab kunj aur wan metu khojta mujhe tha, tab deen ke sadan me
tu 'aah' ban kisi ki, mujhko pukarata tha
mai tha tujhe bulata, sangeet me bhajan me
mere liye khada tha, dukhiyon ke dwar par tu
mai baat johta tha, tera kisi chaman me
bankar kisi ke aansu, mere liye baha tu
aankhe lagi thi meri, tab maan aur dhan me
baaje bajabaja kar, mai tha tujhe rijhata
tab tu laga hua tha, patito ke sanghthan me
mai tha virakt tujhse, jag ki anityata par
utthan bhar raha tha, tab tu kisi patan me
bebas giro huo ke, tu beech me khada tha
mai swarg dekhta tha, jhukta kahan charn me
tune diya aneko awsar n mil saka mai
tu karm me magan tha, mai vyst tha kathan me
tera pata sikandar ko, mai samajh raha tha
par tu basa hua tha, farhaad kohkan me
krisas ki 'haai' me tha, karta vinod tu hi
tu ant me hasa tha, mahmud ke rudan me
prahlad janta tha, tera sahi thikana
tu hi machal raha tha, mansur ki ratan me
aakhir chamak pada tu gandhi ki haddiyon me
mai tha tujhe samjhta, suhraab peele tan me
kaise tujhe samjhta, jab bhed is kadar hai
hairan hoke bhagwan, aaya hun mai saran me
tu roop kai kiran me saundarya hai suman mein
tu praan hai pawan me, vistaar hai gagan me
tu gyan hinduo me, imaan muslimo me
tu me christian me, tu satya hai sujan me
he deenbandhu aisi, pratibha pradan kar tu
dekhu tujhe tringo me, man me tatha vachan me
kathinaiyon dukho ka, itihas hi suyash hai
mujhko samarth kar tu, bas kasht ke sahan me
dukh me n haar maanu, sukh me tujhe n bhulu
aisa prabhav kar de, mere adheer man me
Ramnaresh Tripathi